Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ श्री क्षमाछत्रीसी भव अनंत भमतां थकां, कीधा कुटूंब संबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसिरू, तिणशु प्रतिबंधाते०॥३३॥ इणि परे इहभव परभवे, कीधा पाप अखत्र ।। त्रिविध त्रिविध करी वोसिरू, करू जन्म पवित्रााते॥३४॥ एणि विधि ए आराधना, भावे करशे जेह ॥ समयसुन्दर कहे पापथी, वली छूटशे तेह ॥ ते० ॥ ३५ ॥ राग वैराड़ी जे सुणे, एह त्रीजी ढाल । समयसुन्दर कहे पापथी, छूटे ततकाल ॥ ते ॥ ३६ ॥ ॥ इति श्री पदमावती आराधना सम्पूर्णम् ।। ॥ अथ श्री क्षमाछत्रीसी प्रारंभ ॥ आदर जीव क्षमागुण आदर, म करिश राग ने द्वेषजी ॥ समताये शिव सुख पामीजे, क्रोधे कुगति विशेष जी ॥ आ० ॥१॥ समता संजम सार सुणीजे, कल्पसूत्रनी साख जी। क्रोध पूर्व कोडि चारित्र बाले, भगवंत इणी परे भाखजी||आ०॥२॥ कुण कुण जीव तर्या उपसमथी, सांभल तुं दृष्टांत जी ॥ कुण कुण जीव भम्या भवमाहे, क्रोध तणे विरतंत जी ॥आ०॥३॥ सोमल ससरे शीश प्रजाल्युं, बांधी माटीनी पाल जी ॥ गजसुवूमाल क्षमा मन धरतो मगति गयो ततकाल जी आ०॥४॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114