Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 42
________________ भक्ति रहितो ने उपालंभ ॥ अथ भक्ति रहितोने उपालंभ ।। राग झिंझोटी-ताल पंजाबी ठेको जिन मुख से नाम न समर्यो, तिन मुख में तेरे धूल परीरे ॥ जिन ॥ धिक् तेरो जनम जीवित धिक् तेरो धिक् मानुष की देह घरीरे। जीवित तात मुवो नहीं तेरो, क्यों जनम्यों तु पाप करीरे ॥ जिन० ॥१॥ प्रभु नाम बिन रसना केसी, करो इनकी टुकड़ा टुकड़ी रे। जिन नेत्रन से नाथ न निरखत तिन नेत्रन में लुणभरी रे ॥ जिन० ॥ २॥ रतन पदारथ जनम मानखो, आवत नहीं सो फेर फरीरे। अब तेरो दाव बन्यो है मूरख, करना होय सो ले ने करीरे ॥ जिन ॥३॥ हाथ पसार कीयो नहीं सुकृत, तीरथ सन्मुख दृग न भरीरे। 'खोम' कहे तु भूलो आयो, तेरी खाली खेप परीरे ॥ जिन० ॥४॥ ॥ अथ बारह भावना ॥ आत्मा को वैराग्य वासित बनाने के लिये एकांत स्थान में बैठकर अपने मन में नीचे लिखी १२ भावना चिन्तन करना चाहिए। १-अनित्य भावना "पिता, माता, पुत्र, स्त्री, घर, ऋद्धि तथा अपना शरीर, धन, बन आदि सब पदार्थ" जो कि देखने में आते हैं । ये सब अनित्य हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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