Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 44
________________ बारह भावना भाव रखना, पाप से पीछे हटना, कोई भी काम सोचकर करना, अगर सोच विचार कर करेगा, तो उसके भव थोड़े ( कम ) होवेंगे, ऐसा उत्तम जीव का लक्षण है इसलिए व्यापार करती वक्त भी विचार करना चाहिये जो करने योग्य हो उसे करना, खराब व्यापार नहीं करना, ताकि थोड़े ही भव में मोक्ष जा सकेगा ॥३॥ ४-एकत्व भावना एकान्त में बैठकर इस तरह विचार करना कि, अरे जीव ! तू अकेला आया है और अकेला हो जावेगा सुख दुःख तू अकेला ही भोगेगा, क्योंकि जो अकेला नर्क में जाता है तो मोक्ष में भी अकेला ही जाता है और तिथंच में जावे तो भी अकेला ही जाता है इसलिए जो तू पाप कर्म करता है, खराब काम करता है, रात दिन कुछ गिनता नहीं, सो ऐसा नहीं करना, क्योंकि तेरा किया हुबा तू ही भुगतेगा, वहां कोई भी बचाने को नहीं आवेगा। ऐसा जानकर पापमय व्यापार छोड़ देना, धर्म कार्य ज्यादा करना ऐसा करने से सुख और शांति प्राप्त होगी ॥४॥ ५-अन्यत्व भावना __ अरे जीव ! कुटुम्ब परिवार तो रास्ते चलने वालों का मेला (तमाशा) है । जिस प्रकार मेले में चारों दिशा के लोग इकट्ठे हो जाते हैं और मेला विखर जाने पर वहां कोई नहीं ठहरता। इसी प्रकार संसार में भी आयुष्य पूर्ण होने पर जीव चारों गति में जाता है ऐसा संसार असार है तो भी तू विचारता नहीं और बहुत ही मोह जाल में फंसा नाता है उसके उपर राग करना नहीं ऐसा समझकर धर्म क्रिया करना ऐसा करने से इस भव में सुख और पर भव में कल्याण होगा ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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