Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 43
________________ भक्ति मार्ग नो कन्टक जल के परपोटे के माफिक देखते ही देखते नाश को प्राप्त होते हैं, ऐसा जानकर अनित्य वस्तु पर से राग ( मोह ) हटाना और नित्य वस्तु पर राग करना याने नित्य वस्तु ग्रहण करना जिनेश्वर भगवान का बताया हुआ धर्म तथा अपनी आत्मा का ज्ञान दर्शनीय हैं और वह हमेशा नित्य है इसलिये धर्म करने के ऊपर राग करना, कि जिससे अपना कल्याण हो ॥१॥ २-अशरण भावना संसार में जितने भी जीव हैं कोई किसी का शरणागत नहीं है। माता, पिता, कुटुम्ब, परिवार कोई किसी का नहीं है क्योंकि आयुष्य पूरी करके जीव जैसे कर्म उपार्जन करता है, वैसी गति को पाता है वहाँ अपने किये हुए कर्म उक्ष्य होने पर अकेला ही भोगता है उस जगह कोई बचाता नहीं वास्ते हे जीव ! शरणागत कौन और और कैसे हो सकता है ? शरणागत तो जिनेश्वर भगवान् का बताया हुआ धर्म ही है कि जो भली प्रकार पाले ( आराधन करे ) तो दुर्गति में जाने नहीं देवे इस लिये मन वचन और काया से धर्म की आराधना की जाय तो अपना कल्याण हो सकता है ।।२॥ ३-संसार भावना एकान्त में बैठकर ऐसा विचार करना चाहिये कि हे जीव ! संसा तो असार है, इसमें कुछ सार नहीं है सब स्वार्थ के सगे हैं इसमें अपन स्वार्थ जब तक सिद्ध हाता रहेगा, तब तक स्नेह रक्खेंगे और जब स्वा न होगा, तो मित्र भी शत्रु हो जावेंगे ऐसा जानकर संसार से उदासी) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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