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बारह भावना
१२ धर्म भावना. अहो ! परमषि अरिहंत भगवंतने संसार समुद्र से पार उतारने को नावके समान, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति द्वारा पंचमहाव्रत, दश प्रकार का यतिधर्म आदि, मुक्ति को प्राप्त करानेवाला कैसा उत्तम धर्म का वर्णन किया है। इत्यादि विचारना 'धर्मभावना' कहलाती है। इस प्रकार चिंतन से यह जीव धर्ममार्ग से गिरता नहीं है और धर्म के अनुष्ठान में सावधान होता है।
१३ मित्र भावना. जगत के जीवों पर दया का चिंतन करना, सब जीवों को अपने मित्र के समान समझना, कोई के साथ दुश्मनी नहीं रखना ऐसा चिंतन करना कि सब जीव सुखी हों, कर्मक्षय करके मोक्ष में जावो, उनके ऊपर दया लाकर अच्छी शिक्षा देना, धर्म सिखाना, धर्म मार्ग बताना, धर्म का अभ्यास करना, ऐसा जान सब जीवों पर दया का चिंतन
करना, हित का उपदेश देना, इस प्रकार जीव दूसरे जीव को साता उत्पन्न करे तो खुद का कल्याण हो।
१४ करुणा भावना. किसी दुःखी जीव को देखकर दया लाना, अपने पुण्य के प्रमाण से उसके दुःख का नाश करना, मरता हुआ देखकर बचाना, अपने से हो सके वहां तक उपकार करना, धर्म में मन स्थिर करना, दीन, दुःखी, बिचारों को ऊंचे बढाना, धर्म का काम परिश्रम पूर्वक करना। परोपकार का लाभ बहुत है।
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