Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

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Page 40
________________ श्री आलोयण स्तवन ॥ ढाल३ ॥ इम अनरथ दंड लगाया रे, पिण थारे सरणे नाया। सुलिया धानन लोधारे, पीसण जोया विण दीधारे ॥३६॥ काचा फल तोडी साधारे, पर जीव न जाणी. बाधारे। विसया स्वादे मातोरे, में काल न जाण्यो जातोरे ॥ ४० ॥ संयम लेई नवि पाल्योरे, पोतानो जनम विटाल्योरे। इमि दुषण लागारे, तप करने केइ भांगारे ॥४१॥ लोभे करी पाप उपायारे, तप संयम मूल गमायारे। जिण जिणसु माया मडीरे, धर्म सेती में मति छंडीरे ॥४२॥ गुरु पुस्तक विनय न कोधोरे, तिण कारज को नवि सिद्धोरे। लोभे करी चित्त लपटाणोरे, मांखी मधु जेम मराणोरे ॥ ४३ ॥ पातिक कर परिग्रह संच्योरे, वाते कर जन मन बच्योरे । ते अनरथ मूल न जाण्योरे, मन कुमति कदाग्रह ताण्योरे ॥४४॥ जिन मारग मूल न जाण्योरे, जतने करी बांध्यो ताण्योरे चेलोरे मोहे हडियोरे, तिण पाप अघोरे पडियोरे ।। ४५ ॥ विचरंता गौचरी काजेरे, के दोष कह्या जिनराजेरे। ते दूसण न टले कोइ रे, दिन रात पडंतर ईरे ॥४६॥ मणि मोहरा औषधि मंत्ररे, जडी ज्योतिष पारद तन्त्ररे । न रंजी बहु धन मेल्यारे, जुआरी जुअट खेल्यारे ॥४ा चंचल इन्द्रि वि दमियारे, इम एले नरभव गमियारे । उपशम रस कोई न काव्योरे, तः दरशण हिवे पछताव्योरे ॥४८॥ अपणो मत गाढो पोख्योरे, कोमट करी सोख्योरे। किरिया मैं मूल न पाली रे, आलस श्री आतमा की रे ॥ ४६ ॥ तप वेला ताक्यो ओलो रे, लम करी न सकुहुँ भोलो वलि सूत्र सिद्धान्त न भणिया रे,, दूषण टाल्या के मिशिया रे all Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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