Book Title: Atma Bodh Sara Sangraha
Author(s): Kavindrasagar
Publisher: Kavindrasagar

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ वैराग्य पद ॥ अथ आलोयण स्तवन ॥ पाप अठारे जोव परिहरो, अरिहंत सिद्धनी साखेजी । आलोय पाप छुटिये, भगवंत इण परे भाखेजी ॥ पाप० ॥१॥ आश्रव कषाय दोय बंधवा वली, कलह अभ्याख्यानजी । रति अरति पइसुण निद्रा, माया मोह, मिथ्यातजी || पाप० ॥२॥ मन वच कायाए जे किया, मिच्छामि दुक्कडं तेहजी । गणि समयसुन्दर इम भणें, जैन धर्म नो मर्म एहजी ॥ पाप० ॥३॥ ॥ इतिश्री आलोयण स्तवन सम्पूर्णम् ॥ 1:00:1 ॥ अथ वंराग्य पद || धन धन तेह दिन मुझ कदी होसे, हुं पालीस संजम सूधोजी । पूरब ॠषी पंथ चालसु, गुरु वचने प्रतिबुझोजी ॥ धन० ||१|| अन्त पंत भिक्षा गऊचरी, रण वगडा में संचरसु जी । समता भाव शत्रु मित्र सुं. संवेग सूधो घरसंजी ॥ धन० ॥२॥ संसारना संकट थकी हुँ छूटीस जिनवचने संभारजी । गणि समयसुन्दर इम भणें, हुं पामीस भवनो पारजी ॥ धन० ॥३॥ ॥ इति श्री वैराग्य पदं सम्पूर्णम् ॥ Jain Educationa International ॥ अथ श्री आलोयण स्तवन ॥ (देशी च उपईनी ) आदीश्वर पहिलो अरिहंत, भय भंजण सामी भगवंत । युगला घरम निवारण हार, मन वंछित दोलत दातार ॥ १ ॥ चौरासी लख जोनि रह For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114