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चार शरण
॥ अथ चार शरणा॥ मुझने चार सरणां होजो, अरिहंत सिद्ध सु साघोजी ॥ केवलीए धर्म प्रकाशियो, रत्न अमोलख लाघोजी ।। मु०१॥ चउगति तणा दुःख छेदवा, समरथ सरणो एहजी ॥ पूरव मुनीसर जे हुआ, तिण किया सरणा एहजी ।मु०२॥ संसार माहें जांह जीवसु, ताह सीम सरणां चारजी ॥ गणि समयसुन्दर इम भणे, पामीस पुण्य प्रभावजी ।मु०३||
॥ इतिश्री चार शरणां सम्पूर्णम् ॥
॥ अथ आलोयण स्तवन । . लाख चौरासी जोव खमावीए, मन घरी परम विवेकजी । मिच्छामि दुक्कडं दीजिये, गुरु वचन प्रतिबुझोजी ॥ लाख० ॥१॥ सात लाख भु दग तेऊ बाऊ, दस चवद वनना भैदजी। षट वीगल सुर तीर नारकी, चार चार चऊ नर भेदो जी ॥ लाख० ॥२॥ मुझ वर नहीं छे कोई सु, सहु साथे मैत्री भाव जी। गणि समयसुन्दर इम भणे पामीस पुन्य प्रभाव जी ॥ लाख० ॥३॥
॥ इतिश्री आलोयण स्तवन सम्पूर्णम् ॥
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