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(८) स्त्रीपरिज्ञा : एक प्रतिक्रिया : क्या भगवन् आप भी !
- ज्योत्स्ना मुथा सूत्रकृतांग में विविध दार्शनिक और धार्मिक मान्यताओं का उल्लेख हैं । जैन दर्शन की रूपरेखा व्यवस्थित रूप से भले न बताई हो पर परिग्रह को सबसे कठोर बन्धन कहा है । उसे जानकर तोडने के लिए -
बुज्झिज्जत्ति तिउट्टिज्जा बंधणं परिजाणिया । किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउट्टई ।।
इस गाथा से ही इस श्रुतस्कंध की शुरुआत की है । उपसर्ग, धर्म, समाधि, वैतालीय, कुशील, वीर्य अध्ययन में इसी बात पर जोर दिया है । पर बीच में ही 'स्त्री परिज्ञा' नामक अध्ययन में विशेषत: दूसरे उद्देशक में स्त्रीवृत्तियों का जो वर्णन किया है उसे पढकर एकाएक मुँह से निकला, ‘क्या भगवन् आप भी !'
क्या आप वही भगवन् हो जिन्होंने स्त्रीदास्यत्व दूर किया । अपने संघ में साधु के साथ साध्वी को तथा श्रावकों के साथ श्राविकाओं को तीर्थ के रूप में स्थान दिया । चंदना को संघप्रमुखा बनाया । आप तो त्रिकालदर्शी हो । आप भूत, भविष्य और वर्तमान अच्छी तरह से जानते थे । तो आपको ये सब पता है ना ? प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के समय बाहुबली को जगानेवाली ब्राह्मी सुंदरी जैसी बहनें थी । भरत चक्रवर्ती अपने से दूर रहें इसलिए साठ हजार आयंबिल करनेवाली सुंदरी ही थी । 'अंकुसेण जहा नागो' इस प्रकार रथनेमि को साधुत्व से भ्रष्ट होते हुए बचानेवाली राजीमती एक स्त्री ही थी । अपने शीलरक्षण के लिए अपनी जिह्वा खींचकर मरनेवाली चंदना की माँ धारिणी आपको पता थी। प्रकाण्ड पंडित आ. हरिभद्र को ज्ञान देनेवाली याकिनी
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