Book Title: Arddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Firodaya Prakashan

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Page 233
________________ में, भ्रान्त मान्यताओं का निराकरण करके, स्वमान्यता की प्रस्थापना, बडी सहजता के साथ करते हैं । 'आइक्खमाणो वि सहस्समज्झे एगंतयं सारयती तहच्चे ।' (२.६.४) अध्यात्मयोग की यह महान अनुभूति आर्द्रक ने सिर्फ दो शब्दों में ही व्यक्त करके गोशालक की बाह्य दृष्टि-परकता को ललकार दिया है । क्योंकि वे अभी तक उनसे मिले नहीं थे । संवादों में इस प्रकार की आध्यात्मिक अनुभूतियों से आर्द्रकीय अध्ययन बडा ही रोचक व शिक्षाप्रद बन गया है । उपसंहार : द्वितीय अंग आगम की तुलना बौद्ध परम्परा मान्य 'अभिधम्मपिटक' से की जाती है । सूत्रकृतांग में जहाँ जैनदर्शन की प्रमुख मान्यताओं का वर्णन-विश्लेषण है, वहीं भारतीय संस्कृति में उपजी समस्त मान्यताओं का भी विस्तारपूर्वक प्रामाणिकता से विवेचन है । अगर कोई यह कहे कि एक सम्पूर्ण आगम का नाम बताइए, जिसे पढने पर सम्पूर्ण भारतीय दर्शन तथा जैन आचारसंहिता का अध्ययन हो सके, तो नि:संदेह सूत्रकृतांग का नाम सर्वप्रथम उभर आता है । दर्शन के साथ जीवन व्यवहार के उच्च आदर्श भी यहाँ उपस्थित हैं । कपट, अहंकार, जातिमद, ज्ञानमद आदि पर भी कठोर प्रहार किये हैं । सरल, सात्विक, सामाजिक जीवन दृष्टि को विकसित करने की प्रेरणा सूत्रकृतांग से मिलती है । ७) नालंदीय अध्ययन यात प्रथम गणधर इंद्रभूति गौतमांचा उपदेश आहे. यामध्ये प्रथमच ‘श्रावकाचार' मांडला आहे. २२५


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