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(११) पानी की एक बूँद
कह रही थी, पानी की एक बूँद मुझसे एक दिन । हाल ए दर्द, किस को सुनाऊँ, अब तो बहना तू ही सुन । चतुर्गति की मारी मैं भी, चतुर्गति की मारी तुम । बस् अव्यक्त चेतना हूँ मैं, और व्यक्त चेतना हो तुम ।
आज तुम्हारे हाथ में बाजी, कल पलट भी सकती । आज कर लो, तुम मनमानी, मैं नहीं कर सकती । कोई बनकर हितचिंतक, कर रहे हैं जनजागरण । कहते हैं पानी को, एक घटक पर्यावरण ।
डर है इन्हें, कहीं धोखे में न आ जाय उनका जीवन । इसलिए करते हैं, 'पानी बचाओ' आंदोलन ।
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कोई कहता है मुझे जीवन, तो कोई कहता है नीर ।
हमें 'स्थावर जीव' की उपाधि देनेवाले अकेले महावीर ।
कोई कहता है, मुझे महाभूत, तो कोई कहता है HO विद्वानों के इस मेले में, मेरा सत्य स्वरूप कहनेवाला कोई तो हो ।
कोई कहता है, जलस्पर्श से होती है आत्मशुद्धि | करता है स्नान बार बार, मानकर पानी से मुक्ति । हजारों बार, तीर्थस्नान से भी मिलती नहीं सिद्धि । अरे नादानों ! ये तो भ्रान्त धारणा है, विपरीत बुद्धि ।
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चंदा समदडिया