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सूनकृतांग-विद्यार्थियों के विचार - उन्मेष
प्रास्ताविक साम्प्रत काल में किसी भी ज्ञानशाखा की पदवी या पदव्युत्तर पदवी प्राप्त करने का तरीका बदल गया है । हर एक विद्यार्थी को सालभर किये हुए अध्ययन पर आधारित 'प्रेझेंटेशन' देना पडता है । हमने सोचा कि, जब हम आगमों का अध्ययन पूरे शैक्षणिक स्तर पर कर रहे हैं तब हर एक विद्यार्थी को चाहिए, कि वह लगभग दस मिनिटों का एक प्रेझेंटेशन सबके सामने करें । सन्मति-तीर्थ संस्था में आकर, सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का अध्ययन करनेवाले विद्यार्थियों ने १३ एप्रिल २०१३ को अपने लघुनिबन्ध पढे ।
एक ग्रन्थ की ओर देखने के कितने सारे दृष्टिकोण हो सकते हैं यह तथ्य निम्नलिखित सूचि से उजागर होगा -
सूत्रकृतांगपर (२) पर आधारित लघुनिबन्धों की विषयसूचि १) प्रत्याख्यानक्रिया व ‘नालंदीय' मधील प्रत्याख्यान बागमार चंद्रकला २) मित्रदोषप्रत्ययिक क्रियास्थान
बागमार लता ३) मित्रदोषप्रत्ययिक क्रियास्थान (सद्य:कालीन दृष्टिकोणातून)
बागमार प्रकाश ४) आया अपच्चक्खाणी-विशेष स्पष्टीकरण बागमार स्मिता ५) 'आचारश्रुत' अध्ययन का मुख्य आशय बेदमुथा श्यामल ६) मित्रदोषप्रत्ययिक क्रियास्थान
बोथरा कमल ७) 'लेप' गृहपति : एक आदर्श श्रावक
बोथरा संगीता
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