Book Title: Arddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Firodaya Prakashan

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Page 217
________________ (१२) सद्य:कालीन परिप्रेक्ष्य में सूत्रकृतांग मंगला गोठी अध्यात्मप्रत्ययिक क्रियास्थान का वर्णन 'क्रियास्थान' नामक दूसरे अध्ययन में आया है । जो तेरह क्रियास्थान बताये गये हैं, उनमें से ये आठवाँ क्रियास्थान हैं । संक्षेप में इसका अर्थ यह है कि किसी ने हमें कष्ट नहीं पहुँचाया, फिर भी मन विषाद और निराशा से भरा हुआ है । इसका कारण है क्रोध, मान, माया, लोभ ये चित्त में समाये हुए चार कषाय । मकड़ी के जाल के समान, हम खुद को ही नकारात्मक सोच के जाल में बन्दी बनाकर उसमें जकड़ते चले जाते हैं। मैं तो समझती हूँ कि, आज का मनुष्य सबसे ज्यादा अध्यात्मप्रत्ययिक का ही शिकार बना हुआ है । दहशतवाद, गुण्डागर्दी, अत्याचार और खून की होली खेलनेवाले ये सब मुठ्ठीभर लोग स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं । लेकिन खुद को ही खोखला बनानेवाला अध्यात्मप्रत्ययिक रोग (नासूर) की तरह बढता ही जा रहा है । ये नकारात्मक सोच स्लो पॉइझन का काम कर रही है । I इसके महाभयंकर परिणाम अब हमारे सामने वास्तविक रूप से उभरकर आ रहे हैं । ब्लडप्रेशर, डिप्रेशन, अल्जायमर, स्क्रिझोफेनिया ये सब इसी सोच के परिणाम हैं । आजकल तो बचपन में ही इसका बीज बोया जाता है । शिक्षा, खेल, कला जैसी हुनर में बढती हुई स्पर्धारूपी कषाय ने, बच्चों की निरागसता छीन ली है । परिणाम - बातबात पे चिडचिडापन, जिद्दी स्वभाव, दूसरों को कम लेखना, बड़ों का आदर न करना, ये अब 'घर घर की कहानी' बन गयी है । बात घर की ही आ गयी है, तो हम उसी पे थोडा प्रकाश डाले । पहले की तरह ना तो हम पारतंत्र्य में जी रहे हैं, ना बडी बडी नैसर्गिक आपत्ति का | २०९

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