________________
.१.
सूनकृतांग - द्वितीय श्रुतस्कन्ध - प्रस्तावना
अर्धमागधी आगम ग्रंथों के ग्यारह अंग मौलिक रूप में भ. महावीर द्वारा प्रस्तुत और गणधर द्वारा संकलित हैं । स्वसमय और परसमय का विवेचन करनेवाला आगमग्रंथ 'सूत्रकृतांग' है ।
__द्वितीय श्रुतस्कंध में कुल सात अध्ययन हैं । पाँचवा और छठा अध्ययन छोडकर सब गद्यसूत्रों में शब्दबद्ध हैं । इस द्वितीय श्रुतस्कंध के अध्ययन उद्देशकों में विभक्त नहीं है । भाषा, शब्दप्रयोग और रचनाशैली की दृष्टि से सूत्रकृतांग का प्रथम श्रुतस्कंध प्राचीन प्रतीत होता है । उसकी तुलना में द्वितीय श्रुतस्कंध अर्वाचीन है । प्रथम श्रुतस्कंध की रचना सुधर्मा स्वामी की है । अतः उसका काल ईसवीपूर्व ५ वी शताब्दी होना चाहिए । द्वितीय श्रुतस्कंध के रचनाकार के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है । आचार्य महाप्रज्ञ के मतानुसार द्वितीय श्रुतस्कंध की रचना ईसवीपूर्व २ री शताब्दी के आसपास होनी चाहिए ।
गद्य
सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कंध की विषयवस्तु
अध्ययन स्वरूप सूत्रसंख्या विषय १) पोंडरीय गद्य ३१ पुण्डरीक कमल का दृष्टान्त। (पुण्डरीक)
सदाचारी संयमी पुरुष का
उद्धारक होना । २) किरियाठाण गद्य ४८ कर्मबन्ध और मोक्ष के (क्रियास्थान)
कारणभूत क्रियाओं का प्रतिपादन ।
१४५