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बुद्धिमान पुरुष को इन षट्जीवनिकाय जीवों को हर प्रकार से, सब युक्तियों से जानकर किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए । यही सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है । ‘मार्ग' अध्ययन में गाथा क्र. १०, ११ में 'धर्म' का सार इस प्रकार बताया है – “किसी भी जीव की हिंसा मन-वचन-काया से नहीं करना यह 'अहिंसा-सिद्धान्त' जिसने जान लिया उसने सम्पूर्ण श्रुतज्ञान का सार पा लिया ।” और यही मोक्ष प्राप्ति है, यही 'पुरुषार्थसिद्ध्युपाय' है । इस तरह भ. महावीर ने अखिल मानव जाति के आत्म कल्याण का मार्ग एवं धर्म बताया ।
___ इस धर्मपालन का अधिकारी सिर्फ गर्भज, कर्मभूमिज मनुष्य ही है । 'आदानीय' अध्ययन में गाथा क्र. १७, १८ के अनुसार चारों गतियों में मनुष्यगति प्राप्त होना दुर्लभ है । मनुष्यभव मिलकर भी सम्यक्त्वप्राप्ति, उसके योग्य अंत:करण-परिणति, धर्मप्राप्ति के अनुकूल लेश्याप्राप्ति, ये सारी बातें उत्तरोत्तर दुर्लभ हैं । यह सब जानकर कई ज्ञानी पुरुष, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक् ज्ञानपूर्वक चारित्रपालन या संयमपालन करके पूर्व संचित कर्मों का सामना करके उन्हें पराजित करते हैं और नवीन कर्मबन्ध नहीं करते, तब आत्मा सर्वथा निष्कर्म होकर अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करता है ।
‘आदानीय' अध्ययन में गाथा क्र. २०-२२ के अनुसार परम विशुद्ध अवस्था को प्राप्त, स्व-स्वरूप प्राप्त आत्मा मोक्षप्राप्ति के बाद फिर से जन्म नहीं लेती । क्योंकि जन्म लेने का या संसार का कर्मरूप कारण ही पूर्णत: नष्ट होने से जन्म-मरणरूप संसार भी नष्ट हो जाता है । जब कि ‘आदानीय' अध्ययन में गाथा क्र. ७ में बताया है कि, वैदिक, आजीवक आदि अन्य मतावलंबियों
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