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कर्मसिद्धान्त के फलविपाक में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।
इन सब निकषों से विद्यादान करते करते गुरु या आचार्य को स्वयं भी आत्मविकास की साधना करनी चाहिए । आदर्श गुरु या शिक्षक के निकष जो भगवान महावीर ने आज से २६०० वर्ष पूर्व बताये हैं, ये सारे निकष आज भी आदर्श शिक्षक या उत्कृष्ट प्रवक्ता के लिए ज्यों कि त्यों लागू होते हैं । भाषा के माध्यम से चलनेवाले हर क्षेत्र में जैसे स्कूल या महाविद्यालय, मिडिया, दूरदर्शन, रेडिओ आदि सबके लिए ये उपयुक्त बातें बहुत मायने रखती हैं । अगर 'ग्रन्थ' अध्ययन में बताये हुए इन अध्ययनक्षेत्र के निकषों पर अंमल किया जाय तो, ‘आदर्श शिक्षा व्यवस्था' का यह उत्तम उदाहरण पूरे विश्व के लिए वरदान साबित होगा जिसकी आज निहायत जरूरत है ।
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