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अर्थात् श्रुत्वा शब्द से जैन दर्शन की श्रुतज्ञान की मौखिक परम्परा सूचित होती है, जो सन्त सतियोंद्वारा आगम ज्ञानपर आधारित प्रवचनों के जरिए आज भी जीवित हैं।
यह स्तुति स्तोत्रों की रचना का प्रवाह २६०० वर्ष बाद आज भी प्रवाहित हो रहा है । भक्ति-मार्ग में भक्ति, या आराधना करने का स्तुति-काव्य एक प्रमुख माध्यम है । भक्तिमार्ग पूरा हावी हो चुका है । इसलिए ऐसे स्तवनों की पठन, रटन होता है । जब कि आवश्यकता है उसके, आगमों के चिन्तन, मनन
की।
__ चाहे जो भी हो, पर इतना निश्चित है कि इस वीरस्तुति के माध्यम से आनेवाली पीढियाँ भगवान महावीर से जरूर परिचित होंगी । आचार्य सुधर्मा की यह अनमोल देन है।
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