________________
(९) सूत्रकृतांग का दार्शनिक विश्लेषण : श्रीमद् राजचन्द्र के अनुसार
- सौ. हंसा नहार
द्वितीय अंग आगम, सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन 'समय' में स्वसमय याने जैन सिद्धान्त तथा परसमय याने अन्य धर्मों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन है ।
उन दर्शनों का निरूपण करनेवाले कुछ तत्त्वशास्त्रज्ञों के नाम - १) षड्दर्शनसमुच्चय - आ. हरिभद्रसूरिजी, ८ वी शताब्दी २) अन्ययोग-व्यवच्छेद-द्वात्रिंशिका - आ. हेमचन्द्रसूरिजी १२ वी शताब्दी
स्याद्वाद मंजरी-टीका - आ. मल्लिषेणसूरिजी, १२ वी शताब्दी (जो आगे चलकर जैन दर्शन का एक सुंदर ग्रन्थ और स्वतन्त्र मौलिक रचना के रूप में प्रसिद्ध हुआ ।) सम्यक्त्व षट्स्थान - उपाध्याय श्री यशोविजयजी, १८ वी शताब्दी आत्मसिद्धिशास्त्र (गाथा ४३ से १०० तक) - श्रीमद् राजचन्द्र २० वी शताब्दी. सूत्रकृतांग के समान श्रीमद्जी ने भी किसी वादों का नामनिर्देश किये बिना गुरु-शिष्य के शंका-समाधान रूप से तर्कयुक्त द्वारा सत्य सिद्धान्त का
निरूपण किया है। १) पंचमहाभूतवाद (बृहस्पतिमतानुयायी चार्वाक, जडवादी दर्शन, लोकायतिक):
पृथ्वी, अप्, तेज, वायु तथा आकाश इन पाँच महाभूतों के संयोग से जीवात्मा की उत्पत्ति और विनाश से जीव का नाश ।
११०