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क) गुण और गुणी हमेशा साथ ही होते हैं । प्रत्येक अवस्था 'मैं हूँ' ऐसा
अनुभव ।
(८) जगत्-कर्तृत्ववाद - ईश्वरकृत लोक श्रीमद्जी
कर्ता ईश्वर कोई नहीं, ईश्वर शुद्ध स्वभाव । अथवा प्रेरक ते गण्ये, ईश्वर दोष प्रभाव ।।(७७)
उपसंहार :
आत्मा एकान्त नित्य या एकान्त अनित्य नहीं, पर परिणामी नित्य है । इस प्रकार श्रीमद्जी ने निष्पक्षपात बुद्धि से एकान्तिक मान्यता का समाधान कर स्यावाद शैली से समन्वय साधा है । उनका प्रयोजन, खण्डन-मण्डन न कर के आत्महित को मुख्य रख के परमार्थ समझाने के लिए किया है ।
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