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क) 'वेदान्ती' ब्रह्म के अतिरिक्त समस्त पदार्थों को असत्य मानते हैं ।
श्रीमद्जी
१) शरीरव्यापी होने से राग-द्वेष
में (परभाव में) कर्म का कर्ता
होने से नाना गतियों में गमन
करता है ।
१)
एकात्मवाद
आत्मा सर्वव्यापी होने से
गमन नहीं कर सकता ।
२) ध्रौव्यात्मक
३) एकान्त कूटस्थ नित्य
(४) आत्मषष्ठवाद
१ ) पाँच महाभूत और छट्ठा आत्मा है ।
२)
आत्मा - लोक दोनों नित्य हैं ।
ध्रौव्य युक्त
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२) उत्पाद, व्यय,
३) परिणामी नित्य
श्रीमदजी
१) पृथ्वी, अप्, तेज, वायु
चेतनायुक्त (आत्मा) आकाश जड (अजीव) है ।
२) " आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याये पलटाय" (गाथा ६८)
३) सभी पदार्थ सर्वथा नित्य हैं । असत् की उत्पत्ति नहीं,
सत् का नाश नहीं ।
(५) क्षणिकवाद - बौद्धों का मत (दो रूपों में)
अ) अफलवाद (पञ्चस्कन्धवाद ) : क्षणमात्र स्थित रहनेवाले रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार ये पाँच ही स्कन्ध हैं, आत्मा नामक पृथक् पदार्थ नहीं ।
३) एकान्त - नित्य मानने पर कर्तृत्व परिणाम नहीं और कर्म का
सर्वथा अभाव होगा ।