Book Title: Aradhanasamucchayam
Author(s): Ravichandramuni, Suparshvamati Mataji
Publisher: Digambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan

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Page 16
________________ आराधनासमुच्चयम् -७ द्वौ कुन्देन्दुतुषारहारधवलौ द्वाविन्द्रनीलप्रभी, द्वौ अन्धकामाभौ जिनलुदी द्वौ र प्रियंगुप्रभो। शेषाः षोडश जन्ममृत्युरहिताः संतप्तहेमप्रभाः, ते संज्ञानदिवाकरा: सुरनुता: सिद्धि प्रयच्छन्तु नः॥६॥ - कृत्रिमाकृत्रिम-जिनचैत्य-पूजार्थ्य चन्द्रप्रभु और पुष्पदंत कुन्द फूल के समान, चन्द्रमा के समान, बर्फ के समान अथवा हीरों के हार के समान श्वेत वर्ण के हैं। नेमिनाथ और मुनिसुव्रत नीलमणि के समान मनोज्ञ वर्ण वाले हैं। पद्मप्रभु एवं वासुपूज्य लाल वर्ण के हैं। पारसनाथ और सुपार्श्वनाथ मयूर के कंठ समान हरितवर्ण के हैं और शेष सोलह तीर्थंकर संतप्त सुवर्ण के समान वर्ण वाले हैं। इस प्रकार जिनेन्द्रदेव के शरीर के रंग के अनुसार उनकी स्तुति करना द्रव्य मंगल है। जैसे - कान्त्यैव स्नपयन्ति ये दशदिशो धाम्ना निरुन्धन्ति ये, धामोद्दाममहिस्विनां जनमनो मुष्णान्ति रूपेण ये। दिव्येन ध्वनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात् क्षरन्तोऽमृतं, वन्द्यास्तेऽष्टसहस्रलक्षणधरास्तीर्थेश्वराः सूरयः॥ जिनकी दिव्यध्वनि भव्य जीवों के कानों में अमृत झराती है अर्थात् अमृत की वर्षा करती है, जिनका दिव्य रूप मनुष्यों के मन को मोहित करता है, जो एक हजार आठ लक्षण के धारी हैं वे भगवान मेरी रक्षा करें। केकी कंठ समान छवि वपु उतंग नव हाथ । लक्षण उरग निहार पद बन्दूँ पारसनाथ ॥ जिनकी छवि मयूरकण्ठ के समान (नील वर्ण) है, जिनका शरीर नव हाथ ऊँचा है और जिनके चरण में सर्प का चिह्न है - ऐसे पार्श्वनाथ की मैं वन्दना करता हूँ, इत्यादि ग्राम-नगर, शरीरवर्ण, शरीर की ऊँचाई आदि रूप से जिनेन्द्र भगवान की स्तुति करना द्रव्य मंगल है। जिस नगर में भगवान का जन्म हुआ है, जहाँ पर भगवान ने दीक्षा ग्रहण की है, जहाँ तपश्चरण किया है, जिस स्थान पर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है और जहाँ से केवली भगवान ने मोक्षपद प्राप्त किया है, वह क्षेत्र मंगल है। जैसे - १. समयसार आत्मख्यति। २. श्रीपार्श्वनाथजिनपूजा - जयमाला, कविवर बख्तावर ।

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