Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सभी बातें उन्होंने स्वयं विचार करके प्रस्तुत की हैं। उनका प्रयोजन तो श्रुतपरम्परा में से तथ्यों का संग्रह करना और उनकी संकलना अमुक प्रकार से करना था। जैसे— प्रथम पद में जीव के जो भेद बताए हैं, उन्हीं भेदों को लेकर द्वितीय 'स्थान' आदि द्वारों को घटित करके प्रस्तुत नहीं किया बल्कि स्थान आदि द्वारों का जो विचार जिन विविध रूपों में पूर्वाचार्यों द्वारा प्रस्तुत उनके समक्ष विद्यमान था, उन्होंने उन-उन द्वारों एवं पदों में उन-उन विचारों का संग्रह एवं संकलन किया । इसलिए यह कहा जा सकता है कि भिन्न-भिन्न आचार्यों ने भिन्न-भिन्न काल में जो विचार किया, और परम्परा से श्यामाचार्य को जो प्राप्त हुआ, उसे उन्होंने संगृहीतसंकलित किया। इस दृष्टि से विचार करें तो प्रज्ञापना उस काल की विचार- परम्परा का व्यवस्थित संग्रह है । यही कारण है कि जब आगम लिपिबद्ध किये गये, तब उस-उस विषय की समग्र विचारणा के लिए प्रज्ञापनासूत्र का अतिदेश किया गया।
जैनागमों के मुख्य दो विषय हैं— जीव और कर्म । एक विचारणा जीव को केन्द्र में रखकर उसके अनेक विषयों की— (जैसे कि उसके कितने प्रकार हैं, वे कहाँ-कहाँ रहते हैं ? उनका आयुष्य कितना है ? वे मर कर कहाँ-कहाँ जाते हैं ? कहाँ-कहाँ से किस गति या योनि में आते हैं ? उनकी इन्द्रियाँ कितनी ? वेद कितने ? ज्ञान कितने ? उनके कर्म कौन-कौन से बंधते हैं ? आदि) की जाती है। दूसरी विचारणा कर्म को केन्द्र में रख कर की जाती है। जैसे कि-कर्म कितने प्रकार के हैं ? विविध प्रकार के जीवों के विकास और ह्रास में उनका कितना हिस्सा है ? आदि । २२
प्रज्ञापना में प्रथम प्रकार से विचारणा की गई है।
प्रस्तुत सम्पादन
स्थानकवासी जैनसमाज जागरूक रह कर आगमों एवं जैनसिद्धान्तों के प्रति पूर्ण श्रद्धाशील रहा है। समय-समय पर आगमों के गूढ़भावों को समझाने के लिए स्थानकवासी समाज के अनेक आगमवेत्ताओं ने अपने युग की भाषा में उनका अनुवाद एवं विवेचन किया है । जिस समय टब्बा युग आया, उस समय आचार्य श्री धर्मसिंहजी ने सत्ताईस आगमों पर बालावबोध टब्बे लिखे, जो मूलस्पर्शी एवं शब्दार्थ को स्पष्ट करने वाले हैं । अनुवादयुग में शास्त्रोद्धारक आर्चाय श्री अमोलकऋषिजी म. ने बत्तीस आगमों का हिन्दीअनुवाद किया। पूज्य गुरुदेव श्रमणसंघ के प्रथम आचार्य जैनधर्मदिवाकर श्रीआत्मारामजी महाराज ने अनेक आगमों का हिन्दी - अनुवाद एवं विस्तृत व्याख्या लिखी । तत्पश्चात् पूज्य श्री घासीलालजी महाराज ने संस्कृत में विस्तृत टीका हिन्दी - गुजराती - अनुवादसहित लिखी। और भी अनेक स्थलों से आगम- साहित्य प्रकाशित हुआ । किन्तु जनसाधारण को तथा वर्तमान- तर्कप्रधानयुग की जनता को सन्तुष्ट कर सके, ऐसे न अतिविस्तृत और न अतिसंक्षिप्त संस्करण की मांग निरन्तर बनी रही।
अतः आगममर्मज्ञ बहुश्रुत विद्वान् श्रमणसंघ के युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी महाराज 'मधुकर' के प्रधान
२२. पण्णवणासुत्तं भा. प्रस्तावना, पृ. २०-२१
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