Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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उत्तरदाता का कोई परिचय नहीं मिलता। इसके पश्चात् गणधर गौतम और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तररूप में वर्णन किया गया है। कहीं-कहीं बीच बीच में सामान्य प्रश्नोत्तर हैं।
जिस प्रकार प्रारम्भ में समग्रशास्त्र की अधिकारगाथाएँ दी गई हैं, उसी प्रकार कितने ही पदों के प्रारम्भ में विषय-संग्रहणी गाथाएँ भी प्रस्तुत की गई हैं। जैसे ३, १८, २० एवं २३ वें पद के प्रारम्भ और उपसंहार में गाथाएँ दी गई हैं, इसी प्रकार १० वें पद के अन्त में १८ और ग्रन्थ के मध्य में, यथावश्यक गाथाएँ दी गई है, इसमें प्रक्षिप्त गाथाओं को छोड़कर कुल २३१ गाथाएँ हैं और शेष गद्यपाठ है। प्रज्ञापनासूत्र में जो संग्रहणी गाथाएँ हैं, उनके रचयिता कौन हैं? इस सम्बन्ध में कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रस्तुत सम्पूर्ण आगम का श्लोकप्रमाण ७८८७ है।१९
. इसमें कहीं-कहीं सूत्रपाठ बहुत लम्बे-लम्बे हैं, कहीं अतिदेश युक्त अतिसंक्षिप्त हैं। कहीं-कहीं एक ही विषय की पुनरावृत्ति भी हुई है। प्रायः क्रमबद्ध संकलना है, परन्तु कहीं-कहीं व्युत्क्रम से भी संकलना की गई है।
प्रज्ञापना के समग्र पदों का विषय जैन सिद्धान्त से सम्मत है। भगवतीसूत्र में जैसे कई उद्देशकों या प्रकरणों के प्रारम्भ में कहीं-कहीं अन्यतीर्थिकमत देकर तदनन्तर स्वसिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है, वैसे प्रस्तुत प्रज्ञापनासूत्र में नहीं दिया गया है। इसमें सर्वत्र प्रायः प्रश्नोत्तरशैली में स्वसिद्धान्तविषयक प्रश्न एवं उत्तर अंकित किये गये हैं।
आचार्यश्री मलयगिरि ने प्रज्ञापना में प्ररूपित विषयों का सम्बन्ध जीव, अजीव आदि सात तत्वों के निरूपण के साथ इस प्रकार संयोजित किया है
१-२ जीव-अजीव _ - पद १, ३, ५, १० और १३ में ३ आस्रव
= पद १६ और २२ में ४ बन्ध
= पद २३ में ५-६-७ संवर, निर्जरा और मोक्ष = पद ३६ में
इन पदों के सिवाय शेष पदों में कहीं-कहीं किसी न किसी तत्त्व का निरूपण है। आचार्य मलयगिरि ने जैन दृष्टि से द्रव्य का समावेश प्रथम पद में, क्षेत्र का द्वितीय पद में, काल का चतुर्थ पद में और भाव का शेष पदों में समावेश किया है।२० इस ग्रन्थ में विषयों का निरूपण पहले लक्षण बनाकर नहीं किया गया, अपितु विभाग-उपविभाग द्वारा बताया गया है। अतः यह ग्रन्थ विभाग-प्रधान है। लक्षणप्रधान नहीं।२१
प्रज्ञापना-उपांग आर्य श्यामाचार्य की संकलना है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि इसमें अंकित १९. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भा. १ पृ. ४४६ २०. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्रांक ५ २१. पण्णवणासुत्तं भा. २, प्रस्तावना पृ. १३
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