Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय प्रतिपत्ति :लवणशिखा की वक्तव्यता]
[१३
आवासपर्वत के उत्तर में तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्रपार करने पर अन्य लवणसमुद्र में मन:शिला नाम की राजधानी है। उसका प्रमाण आदि सब वक्तव्यता विजया राजधानी के तुल्य कहना चाहिए यावत् वहां मन:शिलक नामक देव महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थिति वाला रहता है। वेलंधर नागराजों के आवासपर्वत क्रमशः कनकमय, अंकरत्नमय, रजतमय और स्फटिकमय हैं। अनुवेलंधर नागराजों के पर्वत रत्नमय ही हैं।
१६०. कहि णं भंते ! अणुवेलंधरणागरायाओ पण्णत्ता ? गोयमा ! चतारि अणुवेलंधरणागरायाओ पण्णत्ता, तं जहा-कक्कोडए, कद्दमए, केलासे, अरूणप्पभे। ___एतेसिं भंते ! चउण्हं अणुवेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वया पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि आवासपव्वया पण्णत्ता, तं जहा-कक्कोडए, कद्दमए, केलासे अरूणप्पभे।
कहिणं भंते ! कक्कोडगस्स अणुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए णामं आवासपव्वए पण्णत्ते? गोयमा ! जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं कक्कोडगस्स नागरायस्स कक्कोडए णामं आवासपव्वए पण्णत्ते, सत्तरसइक्कवीसाइं जोयणसयाइं तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स णवरि सव्वरयणामए अच्छे जाव निरवसेसं जाव सपरिवारंः अट्ठो से बहूइं उप्पलाइं कक्कोडगप्पभाई सेसं तं चेव णवरि कक्कोडगपव्वयस्स उत्तरपुरच्छिमेणं, एवं तं चेव सव्वं ।
कद्दमस्स वि सो चेव गमो अपरिसेसिओ, णवरि दाहिणपुरथिमेणं आवासो विजुप्पभा रायहाणी दाहिणपुरत्थिमेणं।
कइलासे वि एवं चेव णवरि दाहिणपच्चत्थिमेणं केलासा वि रायहाणी तए चेव दिसाए। अरूणप्पभे वि उत्तरपच्चत्थिमेणं रायहाणी वि ताए चेव दिसाए। चत्तारि वि एगप्पमाणा सव्वरयंणामया य।।
१६०. हे भगवन ! अनुवेलंधर नागराज (वेलंधरों की आज्ञा में चलने वाले) कितने हैं ? गौतम ! अनुवेलंधर नागराज चार हैं, उनके नाम हैं-कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरूणप्रभ।
हे भगवन् ! इन चार अनुवेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत है ? गौतम ! चार आवासपर्वत हैं , यथा -कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरूणप्रभ। .
हे भगवन् ! कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक नाम का आवासपर्वत कहां है?
गौतम ! जंबूद्वीप के मेरूपर्वत के उत्तर पूर्व में (ईशानकोण में) लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर कर्कोटक नागराज का कर्कोटक नामक आवासपर्वत है जो सत्रह सौ इकवीस (१७२१) योजन ऊंचा है आदि वही प्रमाण कहना चाहिए जो गोस्तूप पर्वत का है । विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है यावत् सपरिवार सिंहासन तक सब वक्तव्यता पूर्ववत् जानना चाहिए। कर्कोटक नाम देने का कारण यह है कि यहां की बावड़ियों आदि में जो उत्पल कमल आदि हैं, वे कर्कोटक के आकार-प्रकार और वर्ण के हैं। शेष पूर्ववत् कहना चाहिए। यावत उसकी राजधानी