Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 94
________________ तृतीय प्रतिपत्ति: जम्बूद्वीप आदि नामवाले द्वीपों की संख्या ] [७५ अरूणद्वीप से त्रिप्रत्यवतार हुआ है । इन द्वीप समुद्रों के बाद जो शंख, ध्वज, कलश, श्रीवत्स आदि शुभ नाम हैं , उन नाम वाले द्वीप और समुद्र हैं । ये सब त्रिपत्यवतार वाले हैं । अपान्तराल में भुजगवर कुशवर और क्रौंचवर हैं तथा जितने भी हार-अर्धहार आदि शुभ नाम वाले आभरणों के नाम हैं , अजिन आदि जितने भी वस्तु-नाम हैं , कोष्ठ आदि जितने भी गंधद्रव्यों के नाम हैं , जलरूह, चन्द्रोद्योत आदि जितने भी कमल के नाम हैं , तिलक आदि जितने भी वृक्ष-नाम हैं , पृथ्वी, शर्करा-बालुका, उप्पल, शिला आदि जितने भी ३६ प्रकार के पृथ्वी के नाम हैं , नौ निधियों और चौदह रत्नों के, चुल्लहिमवान् आदि वर्षधर पर्वतों के, पद्म महापद्म आदि हृदों के, गंगा-सिंधु आदि महानदियों के, अन्तरनदियों के, ३२ कच्छादि विजयों के, माल्यवन्त आदि वक्षस्कार पर्वतों के, सौधर्म आदि १२ जाति के कल्पों के, शक्र आदि दस इन्द्रों के, देवकुरू-उत्तरकुरू के, सुमेरूपर्वत के, शक्तादि सम्बन्धी आवास पर्वतों के, मेरूप्रत्यासन्ना भवनपति आदि के कूटों के, चुल्लहिमवान आदि के कूटों के, कृत्तिका आदि २८ नक्षत्रों के, चन्द्रों के और सूर्यों के जितने भी नाम हैं , उन नामों वाले द्वीप और समुद्र हैं । ये सब त्रिप्रत्यवतारवाले हैं। इसके बाद देवद्वीप देवोदसमुद्र है, अन्त में स्वयंभूरमणद्वीप और स्वयंभूरमणसमुद्र है। जम्बूद्वीप आदि नामवाले द्वीपों की संख्या १८६. (अ) केवइया णं भंते ! जंबुद्दीवा दीवा नामधेजेहिं पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा जंबुद्दीवा दीवा नामधेजेहिं पण्णत्ता। केवइया णं भंते ! लवणसमुद्दा समुद्दा नामधेजेहिं पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा लवणसमुद्दा नामधेजेहिं पण्णत्ता। एवं धायइसंडावि। एवं जाव असंखेजा सूरदीवा नामधेजेहि य। एगे देवे दीवे पण्णत्ते। एगे देवोदे समुद्दे पण्णत्ते। एगे नागे जक्खे भूए जाव एगे सयंभूरमणे दीवे, एगे सयंभूरमणसमुद्दे णामधेजेणं पण्णत्ते। .१८६. (अ) भगवन् ! जम्बूद्वीप नाम के कितने द्वीप हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप नाम के असंख्यात द्वीप कहे गये हैं। . भगवन् ! लवणसमुद्र नाम के समुद्र कितने कहे गये हैं ? गौतम ! लवणसमुद्र नाम के असंख्यात समुद्र कहे गये हैं । इसी प्रकार धातकीखण्ड नाम के द्वीप भी असंख्यात हैं यावत् सूर्यद्वीप नाम के द्वीप असंख्यात कहे गये हैं। देवद्वीप नामक द्वीप एक ही हैं । देवोदसमुद्र भी एक ही है । इसी तरह नागद्वीप, यक्षद्वीप, भूतद्वीप, यावत् स्वयंभूरमणद्वीप भी एक ही है। स्वयंभूरमण नामक समुद्र भी एक है। _ विवेचन- पूर्ववर्ती सूत्र में द्वीप-समुद्रों के क्रम का कथन किया गया है। उसमें अरूणद्वीप से लगाकर सूर्यद्वीप तक त्रिप्रत्यवतार (अरूण, अरूणवर, अरूणवरावभास, इस तरह तीन-तीन) का कथन किया गया है । इसके पश्चात् त्रिप्रत्यवतार नहीं हैं । सूर्यद्वीप के बाद देवद्वीप देवोदसमुद्र, नागद्वीपPage Navigation
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