Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र १९४. (अ) चंदविमाणं णं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति?
गोयमा! (सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति ) चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मल-दहिघणगोखीर-फेणरययनिरप्पगासाणं महुगुलियपिंगलक्खा - णं थिर लट्ठ -पऊट्ठ वट्ट पीवर सुसिलिट्ठ सुविसिट्ठ तिक्खदाढाविडं बियमु हाणं रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहाणं ( पसत्थसत्थविरुलियभिसंतकक्कडनहाणं)विसालपीवरोरुपडिपुण्णविउल-खंधाणं मिउविसय-पसत्थ-सहुमलक्खण-विच्छिण्ण-केसरसडोवसोभियाणं चंकमियललियपुलितधवलगव्वियगईणं उस्सिय सुणिम्मियसुजाय-अप्फोडिय-णंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदंताणं वइरामयदाढाणं तवणिज्ज-जोहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोरमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलविरियपुरिसकारपरकम्माणं महया अप्फोडिय-सीहनाइय-बोल-कलकलरवेणं महुरेणं मणहरेण य पूरिता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ सीहरू-वधारिणं देवाणं पुरच्छिमिल्लं बाहं परिबहंति।
१९४. (अ) भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं?
गौतम! सोलह हजार देव चन्द्रविमान को वहन करते हैं। उनमें से चार हजार देव सिंह का रूप धारण कर पूर्व दिशा से उठाते हैं। उन सिंहों का रूपवर्णन इस प्रकार हैं-वे श्वेत हैं , सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं , शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दही, गाय का दूध, फेन चांदी के निकर (समूह) के समान श्वेत प्रभा वाले हैं, उनकी आंखें शहद की गोली के समान पीली हैं, उनके मुख में स्थित सुन्दर प्रकोष्ठों से युक्त, गोल, मोटी, परस्पर जुड़ी हुई विशिष्ट और तीखी दाढ़ाएं हैं, उनके तालु और जीभ लाल कमल के पत्ते के समान मृदु एवं सुकोमल हैं ,उनके नख प्रशस्त और शुभ वैडूर्यमणि की तरह चमकते हुए और कर्कश हैं , उनके उरु विशाल और मोटे हैं, उनके कंधे पूर्ण
और विपुल हैं, उनके गले की केसर-सटा मृदु विशद (स्वच्छ) प्रशस्त सूक्ष्म लक्षणयुक्त और विस्तीर्ण है, उनकी गति चंक्रमणों-लीलाओं और उछलने-कूदने से गर्वभरी (मस्तानी) और साफ-सुथरी होती है, उनकी पूंछे ऊंची उठी हुई, सुनिर्मित-सुजात और फटकारयुक्त होती हैं । उनके नख वज्र के समान कठोर हैं, उनके दांत वज्र के समान मजबूत हैं, उनकी दाढाएं वज्र के समान सुदृढ़ हैं , तपे हुए सोने के समान उनकी जीभ है, तपनीय सोने की तरह उनके तालु हैं, सोने के जोतों से वे जोते हुए हैं। ये इच्छानुसार चलने वाले हैं, इनकी गति प्रीतिपूर्वक होती है, ये मन को रुचिकर लगने वाले हैं , मनोरम हैं, मनोहर हैं, इनकी गति अमित-अवर्णनीय है (चलते-चलते थकते नहीं), इनका बल वीर्यपुरुषकारपराक्रम अपरिमित है। ये जोर-जोर से सिंहनाद करते हुए और उस सिंहनाद से आकाश और दिशाओं को गुंजाते हुए और सुशोभित करते हुए चलते रहते हैं । (इस प्रकार चार हजार देव सिंह का रूप धारण कर चन्द्रविमान को पूर्व दिशा की ओर से वहन करते चलते हैं।)
१९४. (आ) चंदविमाणस्स णं दक्खिणेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतलविमल