________________
१७८ ]
गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि । भगवन्! अनाहारक यावत् काल से कितने समय तक रहता है ?
गौतम! अनाहारक दो प्रकार के हैं - छद्मस्थ- अनाहारक और केवलि - अनाहारक ।
[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
भगवन्! छद्मस्थ-अनाहारक उसी रूप में कितने काल तक रहता है ?
गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट दो समय तक । केवलि - अनाहारक दो प्रकार के हैसिद्धकेवलि-अनाहारक और भवस्थकेवलि-अनाहारक ।
भगवन् ! सिद्धकेवलि - अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ?
गौतम ! वह सादि - अपर्यवसित है ।
भगवन्! भवस्थकेवलि- अनाहारक कितने प्रकार के है ?
गौतम ! दो प्रकार के हैं-सयोगिभवस्थकेवलि-अनाहारक और अयोगि-भवस्थकेवलिअनाहारक । भगवन्! सयोगिभवस्थकेवलि - अनाहारक उसी रूप में कितने समय तक रहता है ? जघन्य उत्कृष्ट रहित तीन समय तक । अयोगिभवस्थकेवलि - अनाहारक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त।
भगवन् ! छद्मस्थ आहारक का अन्तर कितना कहा गया है ?
गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय । केवलि - आहारक का अन्तर जघन्यउत्कृष्ट रहित तीन समय। अनाहारक का अंतर जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृर्ष से असंख्यात काल यावत् अंगुल का असंख्यात भाग ।
सिद्धकेवलि-अनाहारक सादि - अपर्यवसित है अतः अन्तर नहीं है । सयोगिभवस्थकेवलिअनाहारक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट से भी यही है ।
अयोगिभवस्थकेवलि - अनाहारक का अन्तर नहीं है ।
भगवन! इन आहारकों और अनाहारकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े अनाहारक हैं, उनसे आहारक असंख्येयगुण हैं ।
विवेचन आहारक और अनाहारक को लेकर प्रस्तुत सूत्र में सर्व जीवों के दो प्रकार बताये हैं । विग्रहगतिसमापन्न, केवलिसमुद्घात वाले केवली, अयोगी केवली और सिद्ध-ये ही अनाहारक हैं, शेष जीव आहारक है ।'
कायस्थिति- आहारक जीव दो प्रकार के हैं - छद्मस्थ आहारक और केवलि आहारक। छद्मस्थआहारक की जघन्य कायस्थिति दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण है । यह विग्रहगति से आकर क्षुल्लकभव
१. विग्गहगइमावन्ना केवलिणो समुहया अजोगी या ।
सिद्धा य अणाहारा, सेसा आहारगा जीवा ॥