Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 204
________________ सर्वजीवाभिगम] [१८५ इनमें जो सादि-सपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से अनन्तकाल तक जो यावत् देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है, मिथ्यादृष्टि रूप से रह सकते हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि(मिश्रदृष्टि) जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त तक रह सकता है। सम्यग्दृष्टि के अन्तरद्वार में सादि-अपर्यवसित का अंतर नहीं है, सादि-सपर्यवसित का जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है, जो यावत् अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है। ___ अनादि-अपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का अन्तर नहीं है, अनादि-सपर्यवसित मिथ्यादृष्टि का भी अन्तर नहीं है, सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है। ___ सम्यग्मिथ्यादृष्टि का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है, जो देशोन अपार्धपद्गलपरावर्त रूप है। अल्पबहुत्वद्वार में सबसे थोड़े सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं, उनसे सम्यग्दृष्टि अनन्तगुण हैं और उनसे मिथ्यादृष्टि अनन्तगुण हैं। विवेचन-सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि । इनका स्वरूप पहले बताया जा चुका है। यहां इनकी कायस्थिति (संचिट्ठणा), अन्तर और अल्पबहुत्व को लेकर विवेचना की गई है। कायस्थिति-सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं-सादि-अपर्यवसित (क्षायिक सम्यग्दृष्टि) और सादिसपर्यवसित (क्षायोपशमिक आदि सम्यग्दर्शनी)। इनमें जो सादि-सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि हैं, उनकी संचिट्ठणा (कायस्थिति) जघन्य से अन्तर्मुहूर्त हैं, क्योंकि विचित्र कर्मपरिणाम होने से इतने काल के पश्चात् कोई जीव मिथ्यात्व में चला जा सकता है। उत्कर्ष से छियासठ सागरोपम तक वह रह सकता है। इसके बाद नियम से क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन नहीं रहता। मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित। इनमें जो सादि-सपर्यवसित है वह जघन्य से अन्तर्मुहूतं तक रहता है। इतने काल के बाद कोई जीव पुनः सम्यग्दर्शन पा सकता है। उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रह सकता है। यह अन्तकला कालमार्गण से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप है और क्षेत्रमार्गणा से देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है, क्योंकि जिसने पहले एक बार भी सम्यकत्व पा लिया हो, वह इतने काल के बाद पुनः अवश्य सम्यग्दर्शन पा लेता है। पर्व सम्यकत्व के प्रभाव से उसने संसार को परित्त कर लिया होता है। ___सम्यग्मिथ्यादृष्टि उस रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से भी अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है, क्योंकि स्वभावतः मिश्रदृष्टि का इतना ही कालप्रमाण है। केवल जघन्य से उत्कृष्ट पद अधिक है। अन्तरद्वार-सादि-अपर्यवसित सम्यग्दृष्टि का अन्तर नहीं हैं, क्योंकि वह अपर्यवसित है। सादिसपर्यवसित सम्यग्दृष्टि का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि सम्यकत्व से गिरकर कोई जीव अन्तर्मुहूर्त काल में पुनः सम्यक्त्व पा लेता है। उत्कर्ष से उसका अन्तर अनन्तकाल अर्थात् अपार्धपुद्गलपरावर्त है।

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