Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सर्वजीवाभिगम]
[२१३
सुयअण्णाणी विभंगणाणी।
आभिणिबोहियणाणी णं भंते! आभिणिबोहियणाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जह० अंतो० उक्को० छावट्ठिसागरोवमाइं साइरेगाई। एवं सुयणाणीवि।ओहिणाणी णं भंते! ०? जह० एक्कं समयं उक्को० छावट्ठिसागरोवमाइं साइरेगाई। मणपजवणाणी णं भंते! ०? जह० एवं समयं उक्को० देसूणा पुव्वकोडी। केवलणाणी णं भंते! ०? साइए अपज्जवसिए। __ मइअण्णाणी णं भंते! • ? मइअण्णाणी तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जह० अंतो० उक्को० अणंतं कालं जाव अवटुं पोग्गलपरियटें देसूणं। सुयअण्णाणी एवं चेव। विभंगणाणी णं भंते! ०? जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं देसूणाए पुव्वकोडिए अब्भहियाई। __ आभिणिबोहियणाणिस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? जह० अंतो०, उक्को० अणंतं कालं जाव अवटुं पोग्गलपरियटें देसूणं। एवं सुयणाणिस्सवि। ओहिणाणिस्सवि, मणपज्जवणाणिस्सवि। केवलणाणिस्स णं भंते! अंतरं०? साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं। मइ-अण्णाणिस्स णं भंते! अंतरं० ? अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं। अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं। साइयस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावठिं सागरोवमाइं साइरेगाई। एवं सुय-अण्णाणिस्सवि। विभंगणाणिस्स णं भंते! अंतरं० ? जह० अंतो०, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
एएसि णं भंते! आभिणिबोहियणाणीणं सुयणाणीणं ओहि० मण० केवल. मइअण्णाणीणं सुयअण्णाणीणं विभंगणाणीणं कयरे० ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी, ओहिणाणी असंखेजगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी असंखेजगुणा, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी एए दोवि तुल्ला विसेसाहिया, विभंगणाणी असंखेजगुणा, केवलणाणिणो अणंतगुणा, मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य दोवि तुल्ला अणंतगुणा। ___ २५४. जो ऐसा कहते हैं कि आठ प्रकार के सर्व जीव हैं, उनका मन्तव्य है कि सब जीव । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी के भेद आठ प्रकार के हैं।
भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम तक रहता है। श्रुतज्ञानी भी इतना ही रहता है। अवधिज्ञानी जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम तक
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