Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 239
________________ २२०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र प्रथमसमयनैरयिक असंख्यातगुण , उनसे प्रथमसमयदेव असंख्यातगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यंच असंख्यातगुण, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्यातगुण, उनसे अप्रथमसमयदेव असंख्यातगुण, उनसे सिद्ध अनन्तगुण और उनसे अप्रथमसमयतिर्यंग्योनिक अनन्तगुण हैं। ___ इस प्रकार सर्वजीवों की नवविधप्रतिपत्ति पूर्ण हुई। विवेचन-इनकी युक्ति और भावना पूर्व में प्रतिपादित की जा चुकी है। सर्वजीव नवविधप्रतिपत्ति पूर्ण। सर्वजीव-दसविध-वक्तव्यता २५८. तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहापुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अणिंदिया। पुढविकाइया णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जह० अंतो०, उक्को० असंखेनं कालं-असंखेजाओ उस्सप्पिणीओ ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेजा लोया। एवं आउ-तेउ-वाउकाइए। वणस्सइकाइए णं भंते! ०? गोयमा! जह० अंतो०, उक्को०, वणस्सइकालो। बेंदिए णं भंते! ०? जह० अंतो०, उक्कोसेणं संखेनं कालं। एवं तेइंदिएवि, चउरिदिएवि। पंचिंदिए णं भंते! ०? गोयमा। जह० अंतो०, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं साइरेगं। अणिदिए णं भंते! ०? साइए अपज्जवसिए। पुढविकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जह०अंतो०, उक्को० वणस्सइकालो। एवं आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स। वणस्सइकाइयस्स णं भंते! अंतरं कालओ०? जा चेव पुढविकाइयस्स संचिट्ठणा, बय-तिय-चउरिंदिया-पंचेंदियाणं एएसि चउण्हपि अंतरं जह० अंतो०, उक्को. वणस्सइकालो। अणिंदियस्स णं भंते! अंतरं कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! साइयस्स अपजवसियस्स णत्थि अंतरं। एएसिणं भंते! पुढविकाइयाणं आउ-तेउ-वाउ-वण-वेंदियाणं तेंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं अणिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो०? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, तेउकाइया असंखेजगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अणिंदिया अणंतगुणा, वणस्सइकाइया अणंतगुणा।

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