Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 228
________________ सर्वजीवाभिगम] [२०९ रहित हैं । अशरीरी सादि-अपर्यवसित हैं, अतः सदा उस रूप में रहते हैं। ___ अन्तरद्वार-औदारिकशरीरी का अन्तर जघन्य से एक समय है। वह दो समयवाली अपान्तराल गति में होता है, प्रथम समय में कार्मणशरीरी होने से। उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम है। यह उत्कृष्ट वैक्रियकाल है। वैक्रियशरीरी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। एक बार वैक्रिय करने के बाद इतने व्यवधान पर दुबारा वैक्रिय किया जा सकता है। मानव और देवों में ऐसा होता है। उत्कर्ष से वनस्पतिकाल का अन्तर स्पष्ट ही है। आहारकशरीरी का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। एक बार करने के बाद इतने व्यवधान से पुनः किया जा सकता है। उत्कर्ष से अनन्तकाल, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है। तेजसकार्मणशरीर का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्वद्वार-सबसे थोड़े आहारकशरीरी हैं, क्योंकि ये अधिक से अधिक दो हजार से नौ हजार तक ही होते हैं। उनसे वैक्रियशरीरी असंख्येयगुण हैं, क्योंकि देव, नारक, गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और वायुकाय वैक्रियशरीरी है। उनसे औदारिकशरीरी असंख्येयगुण हैं । निगोदों में अनन्तजीवों का एक ही औदारिकशरीर होने से असंख्यगुणत्व ही घटित होता है, अनन्तगुण नहीं। जैसा कि मूल टीकाकार ने कहा-औदारिकशरीरियों से अशरीरी अनन्तगुण हैं, सिद्धों के अनन्त होने से, औदारिकशरीरी शरीर की अपेक्षा असंख्येय है। औदारिकशरीरियों से अशरीरी अनन्तगुण हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं। उनसे तेजस-कार्मणशरीरी अनन्तगुण हैं, क्योंकि निगोदों में तेजस-कार्मणशरीर प्रत्येक जीव के अलग-अलग हैं, और वे अनन्तगुण हैं। तेजस और कार्मणशरीर परस्पर अविनाभावी हैं और परस्पर तुल्य हैं। इस प्रकार षड्विध सर्वजीवप्रतिपत्ति पूर्ण हुई। सर्वजीव-सप्तविध-वक्तव्यता २५२. तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविहा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु, तं जहापुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया अकाइया। संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेजगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, सिद्धा (अकाइया) अणंतगुणा, वणस्सइकाइया अणंतगुणा। २५२. जो ऐसा कहते हैं कि सब जीव सात प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा१. आह च मूलटीकाकार:-औदारिकशरीरिभ्योऽशरीरा अनन्तगुणाः सिद्धानामनन्तत्वात्, औदारिकशरीरिणां च शरीरापेक्षयाऽसंख्येयत्वादिति।

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242