Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सर्वजीवाभिगम ]
[१९१
अन्तरद्वार - सुक्ष्म का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल है । यह असंख्येयकाल अंगुलासंख्येयभाग है । बादरकाल इतना ही है । बादर का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल है । यह असंख्येयकाल क्षेत्र से असंख्येय लोकप्रमाण है। सूख्मकाल इतना ही है।
नोसूक्ष्म - नोबादर का अन्तर नहीं है, क्योंकि वह सादि - अपर्यवसित है। अपर्यवसित होने से अन्तर नहीं होता ।
अल्पबहुत्वद्वार - सबसे थोड़े नोसूक्ष्म- नोबादर हैं, क्योंकि सिद्धजीव अन्य जीवों की अपेक्षा अल्प हैं। उनसे बादर अनन्तगुण हैं, क्योंकि बादरनिगोद जीव सिद्धों से भी अनन्तगुण हैं, उनसे सूक्ष्म असंख्येयगुण हैं क्योंकि बादरनिगोदों से सूक्ष्मनिगोद असंख्यातगुण हैं ।
२४१. अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा सण्णी, असण्णी, नोसण्णीनोअसण्णी ।
सणी णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं साग़रोवमसयपुहुत्तं साइरेगं । असण्णी जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो । नोसण्णीनोअसण्णी साइए- अपज्जवसिए ।
सण्णिस्स अंतरं जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो । असण्णिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं साइरेगं, तइयस्स णत्थि अंतरं ।
अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा सण्णी, नोसण्णी- नोअसण्णी अनंतगुणा, असण्णी अनंतगुण ।
२४१. अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं-संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी ।
भगवन् ! संज्ञी, संज्ञी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक समय तक रहता है । असंज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी सादि- अपर्यवसित है, अतः सदाकाल रहता है।
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संज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । असंज्ञी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी का अन्तर नहीं है।
अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संज्ञी हैं, उनसे नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी अनन्तगुण हैं और उनसे असंज्ञी अनन्तगुण हैं ।
विवेचन - संज्ञी, असंज्ञी की विवक्षा से जीवों का त्रेविध्य इस सूत्र में बताकर उनकी संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का कथन किया गया है ।
कायस्थिति (संचिट्ठणा ) - संज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक उसी रूप में रह सकता है। इसके