Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 196
________________ सर्वजीवाभिगम] [१७७ अंतोमुहुतं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। अणाहारए णं भंते ! केवचिरं होइ ? गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहाछउमत्थअणाहारए य केवलिअणाहारए य। छउमत्थअणाहारए णं जाव केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया। के वलिअणाहारए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सिद्धके वलिअणाहारए य भवत्थकेवलिअणाहारए य। सिद्धकेवलिअणाहारए णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ? साइए अपज्जवसिए।भवत्थकेवलिअणाहाराए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? भवत्थकेवलिअणाहाराए दुविहे पण्णत्ते, सजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारए य। __ सजोगिभवत्थके वलिअणाहारए णं भंते ! कालओ के वचिरं होइ ? अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया। अजोगीभवत्थकेवली० ? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। ___ छउमत्थआहारगस्स केवइयं कालं अंतरं? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो समया। __ केवलिआहारगस्स अंतरं अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया। छउमत्थअणाहारगस्स अंतरं जहन्नेणं खुड्डागभवग्गहणं दुसमयऊणं उक्कोसेणं असंखेन्जकालं जाव अंगुलस्य असंखेज्जइभागं। सिद्धकेवलिअणाहारगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं। ___ सजोगिभवत्थके वलिअणाहारगस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि। अजोगिभवत्थकेवलिअणाहारगस्स णत्थि अंतरं। एएसि णं भंते ? आहारगाणं अणाहारगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा. गोयमा ! सव्वत्थोवा अणाहारगा, आहारगा असंखेज्जगुणा। २३४. अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-आहारक और अनाहारक। भगवन्! आहारक, आहारक के रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! आहारक दो प्रकार के हैं-छद्मस्थ-आहारक और केवलि-आहारक। भगवन् ! छद्मस्थ-आहारक, आहारक के रूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य दो समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से असंख्येय काल तक यावत् क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल का असंख्यातवां भाग। केवलि-आहारक यावत् काल में कितने समय तक रहता है?

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