Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 194
________________ सर्वजीवाभिगम ] [ १७५ अंतरं य जहण्णेणं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा अणागारोवउत्ता, सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा । २३३. अथवा सब जीव दो प्रकार के है - ज्ञानी और अज्ञानी । भगवन् ! ज्ञानी, ज्ञानीरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम! ज्ञानी दो प्रकार के हैं - सादि- अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित। इनमें जो सादिसपर्यवसित हैं वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकते हैं । अज्ञानी के लिए वही वक्तव्यता है जो पूर्वोक्त सवेदक की है। 1 ज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल, जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है । आदि के दो अज्ञानी - अनादि- अपर्यवसित और अनादि - सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर नही है । सादि - सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक छियासठ सागरोपम है। अल्पबहुत्वं में सबसे थोड़े ज्ञानी, उनसे अज्ञानी अनन्तगुण हैं । अथवा दो प्रकार के सब जीव है - साकार - उपयोग वाले और अनाकार - उपयोग वाले। इनकी संचिट्ठणा और अन्तर जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है । अल्पबहुत्व में अनाकार - उपयोग वाले थोड़े हैं, उनसे साकार - उपयोग वाले संख्येयगुण है । विवेचन - ज्ञानी और अज्ञानी की अपेक्षा से सब जीवों का द्वैविध्य इस सूत्र में कहा गया है। ज्ञानी से यहां सम्यग्ज्ञानी अर्थ अभिप्रेत है और अज्ञानी से मिथ्याज्ञानी अर्थ समझना चाहिए। ज्ञानी दो प्रकार के हैं - सादि - अपर्यवसित और सादि- सपर्यवसित । केवली सादि- अपर्यवसित हैं, क्योंकि केवलज्ञान सादि-अनन्त । मतिज्ञानी आदि - सपर्यवसित हैं, क्योंकि मतिज्ञान आदि छाद्मस्थिक होने से सादिसान्त हैं। इनमें जो सादि - सपर्यवसित ज्ञानी है, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त काल तक और उत्कृष्ट से छियासठ सागरोपम तक रहता । सम्यक्त्व की जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त है इस अपेक्षा में सम्यक्त्वधारी ज्ञानी की जघन्यस्थिति अन्तर्मुहूर्त बतायी है । सम्यग्दर्शन का उत्कृष्ट काल छियासठ सागरोपम से कुछ अधिक है, अतः ज्ञानी की उत्कृष्ट संचिट्ठणा छियासठ सागरोपम से कुछ अधिक बताई है। यह स्थिति सम्यक्त्व से गिरे बिना विजयादि में जाने की अपेक्षा से है । जैसा कि भाष्य में कहा है कि दो बार विजयादि विमान में अथवा तीन बार अच्युत देवलोक में जाने से छियासठ सागरोपम काल और मनुष्य के भवों का काल साधिक से गिनने से उक्त स्थिति बनती है । अज्ञानी की संचिट्ठणा बताते हुए कहा गया है कि अज्ञानी तीन प्रकार के हैं - अनादि - अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित। अनादि - अपर्यवसित अज्ञानी वह है जो कभी मोक्ष में नही जायेगा। अनादि-सपर्यवसित अज्ञानी वह है जो अनादि - मिथ्यादृष्टि सम्यक्त्व पाकर और उससे अप्रतिपतित १. " सम्यग्दृष्टेर्ज्ञानं मिथ्यादृष्टेर्विपर्यासः" इति वचनात् । २. दो वारे विजयाइसु गयस्स तिन्निऽअच्चुए अहव ताई । अरे गं नरभवियं नाणा जीवाण सव्वद्धा ॥ - भाष्यगाथा

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