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सर्वजीवाभिगम
सर्वजीव-द्विविधवक्तव्यता
संसारसमापन्नक जीवों की दस प्रकार की प्रतिपत्तियों का प्रतिपादन करने के पश्चात् अब सर्वजीवाभिगम का कथन किया जा रहा है। इस सर्वजीवाभिगम में संसारसमापन्नक और असंसारसमापनक-दोनों को लेकर प्रतिपादित किया है।
२३१. से किं तं सव्वजीवाभिगमे?
सव्वजीवेसु णं इमाओ णव पडिवत्तीओ एवमाहिजति। एगे एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता जाव दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता।
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा-सिद्धा य असिद्धा य।
सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! साइ-अपजवसिए। असिद्धे णं भंते! असिद्धत्ति कालओ केवचिरं होइ?
गोयमा! असिद्धे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए।
सिद्धस्स णं भत्ते! केवइकालं अंतरं होइ? गोयमा! साइयस्स अपजवसियस्स णत्थि अंतरं। असिद्धे णं भंते! केवइयं अंतर होइ?
गोयमा! अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं । अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं।
एएसि णं भंते! सिद्धाणं असिद्धाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा०? गोयमा! सव्वत्थोवा सिद्धा, असिद्धा अणंतगुणा। २३१. भगवन् ! सर्वजीवाभिगम क्या है?
गौतम! सर्वजीवाभिगम में नौ प्रतियांत्तियां कही हैं। उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत् दस प्रकार के हैं । जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा-सिद्ध