Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 188
________________ सर्वजीवाभिगम] [१६९ और असिद्ध। भगवन् ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है? गौतम! सिद्ध सादिअपर्यवसित है, (अतः सदाकाल सिद्धरूप में रहता है।) भगवन् ! असिद्ध, असिद्ध के रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! असिद्ध जीव दो प्रकार के अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित। (अनादि-अपर्यवसित असिद्ध सदाकाल असिद्ध रहता है और अनादि-सपर्यवसित मुक्ति-प्राप्ति के पहले तक असद्धरूप में रहता है।) भगवन् ! सिद्ध का अन्तर कितना? गौतम! सादि-अपर्यवसित का अन्तर नही होता है। भगवन् ! असिद्ध का अंतर कितना होता है? गौतम! अनादि-अपर्यवसित असिद्ध का अंतर नहीं होता है। अनादि-सपर्यवसित का भी अंतर नहीं होता है। भगवन् ! इन सिद्धों और असिद्धों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? गौतम! सबसे थोड़े सिद्ध उनसे असिद्ध अनन्तगुण हैं। विवेचन-जैसे संसारसमापन्नक जीवों के विषयों में नौ प्रकार की प्रतिपत्तियां कही गई हैं, वैसे ही सर्वजीव के विषय में भी नौ प्रतिपत्तियां कही गई हैं। सर्वजीव में संसारी और मुक्त, दोनों प्रकार के जीवों का समावेश होता है। अतएव इन कही जाने वाली नौ प्रतिपत्तियों में सब जीवों का समावेश होता है। वे नौ प्रतिपत्तियां इस प्रकार हैं (१) कोई कहते है कि सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा-सिद्ध और असिद्ध । . (२) कोई कहते है कि सब जीव तीन प्रकार के हैं , यथा-सम्यग्दृष्टि , मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि। (३) कोई कहते है कि सब जीव चार प्रकार के हैं, यथा-मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी। .. (४) कोई कहते है कि सब जीव पांच प्रकार के हैं, यथा-नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्ध। (५) कोई कहते है कि सब जीव छह प्रकार के हैं, यथा-औदारिकशरीरी, वैक्रियशरीरी, आहारकशरीरी, तैजसशरीरी, कार्मणशरीरी और अशरीरी। (६) कोई कहते है कि सब जीव सात प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक। (७) कोई कहते है कि सब जीव आठ प्रकार के हैं, यथा-मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, केवलज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242