________________
[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
बादर अपर्याप्तों की कायस्थिति के दसों सूत्रों में जघन्य और उत्कृष्ट से सर्वत्र अन्तर्मुहूर्त कहना
चाहिए ।
बादर पर्याप्त के औधिकसूत्र में कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व है । (इसके बाद अवश्य बादर रहते हुए भी पर्याप्तलब्धि नहीं रहती ।) बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष कहने चाहिए। ( इसके बाद बादरत्व होते हुए भी पर्याप्तलब्धि नहीं रहती ।) इसी प्रकार अप्कायसूत्रों में भी कहना चाहिए। तेजस्कायसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात अहोरात्र कहने चाहिए। वायुकायिक, सामान्य बादर - वनस्पति, प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय के सूत्र बादर पर्याप्त पृथ्वीकायवत् ( जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष ) कहने चाहिए । सामान्य निगोद - पर्याप्तसूत्र में जघन्य, उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त, बादर त्रसकायपर्याप्तसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शतपृथक्त्व कहना चाहिए । ( इतनी स्थिति चारों गतियों में भ्रमण करने से घटित होती है) । '
अन्तरद्वार
१३८]
२२०.
• अंतरं बायरस्स बायरवणस्सइस्स, णिओदस्स, बादरणिओदस्स एतेसिं चउण्हवि पुढविकालो जाव असंखेज्जा लोया, सेसाणं वणस्सइकालो ।
एवं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणवि अंतरं ।
ओहे य बायरतरु ओघनिगोदे बायरणिओए य ।
कालमसंखेज्जं अंतरं सेसाण वणस्सइकालो ॥१ ॥
२२०. औधिक बादर, बादर वनस्पति, निगोद और बादर निगोद, इन चारों का अन्तर पृथ्वीकाल है, अर्थात् असंख्यातकाल है । यह असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी के बराबर है (कालमार्गणा से) तथा क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लिप्त हो जायें, उतना कालप्रमाण जानना चाहिए। (सूक्ष्म की जो कायस्थिति है, वही बादर का अन्तर जाना चाहिए ।)
शेष बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक और बादर त्रसकायिक- इन छहों का अन्तर वनस्पतिकाल जानना चाहिए ।
-
इसी तरह अपर्याप्तक और पर्याप्तक संबंधी दस-दस सूत्र भी ऊपर की तरह कहने चाहिए । यही बात गाथा में कही गई है औधिक, बादर वनस्पति, सामान्य निगोद और बादर निगोद का अंतर संख्येयकाल है और शेष का अन्तर वनस्पतिकाल - प्रमाण है ।
अल्पबहुत्वद्वार
२२१. (अ) ( १ ) अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायर उक्काइया
१. सूत्रोक्त गाथाएं सक्षिप्त होने से उनके भावों को टीकानुसार स्पष्ट किया गया है।