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षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति ]
ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो ।
बायरपुढविकाइय-आउ - तेउ - वाउ. पत्तेयसरीरबादरव्रणस्सइकाइयस्स बायर णिओदस्स (बादरवणस्सइस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कासेणं असंखेज्जं कालं, असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो ।
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पत्तेगसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायरणिगोदस्स पुढवीव । बायरणियोदस्स णं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं -अणंता उस्सप्पिणी - ओसप्पिणीओ कालओ खेत्तओ अड्डाइज्जा पोग्गलपरियट्टा । ) एतेसिं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सत्तरसागरोवम कोडाकोडीओ |
संखातीयाओ समाओ अंगुल भागे तहा असंखेज्जा । ओहे य बायर तरु - अणुबंधो सेसओ वोच्छं ॥१ ॥ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणी अड्डाइय पोग्गलाण परियट्ठा । उदधिसहस्सा खलु साधिया होतिं तसकाए ॥ २ ॥ अंतोमुहुत्तकालो होइ अपज्जत्तगाण सव्वेसिं । पज्जत्तबायरस्स य बायरतसकाइयस्सावि ॥ ३ ॥ एतेसिं ठिई सागरोवम सयपुहत्तसाइरे गं ।
उस संख इंदिया दुविहणिओदे मुहुत्तमद्धं तु । से साणं संखेज्जा वाससहस्सा य सव्वेसिं ॥४ ॥
२१९. भगवन्! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल । यह असंख्यातकाल असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों के बराबर है तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने काल के बराबर हैं । बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक, बादर वायुकायिक, प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक और बादर निदोग की जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है । बादर वनस्पति की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्येयकाल है, जो कालमार्गणा से असंख्येय उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी तुल्य है और क्षेत्रमार्गणा से अंगुलासंख्येयभाग के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक-एक के मान से अपहार करने पर लगने वाले काल के बराबर है । सामान्य निगोद की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है । वह अनन्तकाल कालमार्गणा से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण है और क्षेत्रमार्गणा से ढाई पुद्गल - परावर्त तुल्य है । बादर त्रसकायसूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्येयवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम की कायस्थिि कहनी चाहिए ।