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सप्तविधाख्या षष्ठ प्रतिपत्ति
२२५. तत्थ णं जेते एवमाहंसु-'सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा' ते एवमाहंसु, तं जहा-नेरइया तिरिक्खा तिरिक्खजोणिणीओ मणुस्सा मणुस्सीओ देवा देवीओ।
नेरइयस्स ठिई जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। तिरिक्खजोणियस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं, एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मणुस्साणवि, मणुस्सीणवि। देवाणं ठिई जहा णेरइयाणं, देवीणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाइं।
नेरइय-देव-देवीणं जाचेव ठिई साचेव संचिट्ठणा। तिरिक्खजोणियाणं जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतकाल, तिरिक्खजोणिणीणं जहन्नेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियाई। एवं मणुस्सस्स मणुस्सीएवि।
णेरइयस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं सव्वाणं तिरिक्खजोणियवज्जाणं।तिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं।
अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ, मणुस्सा असंखेजगुणा, नेरइया असंखेजगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेजगुणाओ, देवा असंखेजगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। . सेत्तं सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा।
२२५. जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नकजीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार वे सात प्रकार ये हैं-नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची (तिर्यक्स्त्री ), मनुष्य, मानुषी, देव और देवी।
नैरियक की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। तिर्यक्योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यक्स्त्री , मनुष्य और मनुष्यस्त्री की भी यही स्थिति है। देवों की स्थिति नैरयिक की तरह जानना चाहिये और देवियों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम है।
. नैरयिक और देवों की तथा देवियों की जो भवस्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा (कायस्थिति) है। तिर्यंचों की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल है। तिर्यस्त्रियों की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथकत्व अधिक तीन पल्योपम है। इसी प्रकार मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों की भी