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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
प्रथमसमयतिर्यग्योनिक की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट भी एक समय है। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक की जघन्य स्थिति एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण' है और उत्कृष्ट स्थिति एक समय कम तीन पल्योपम है।
इसी प्रकार मनुष्यों की स्थिति तिर्यग्योनिकों के समान और देवों की स्थिति नैरयिको के समान कहनी चाहिए।
नैरयिक और देवों की जो स्थिति है, वही दोनों प्रकार के (प्रथमसमय-अप्रथमसमय) नैरयिकों और देवों की कायस्थिति (संचिट्ठणा) है। ___ भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक उसी रूप में कितने समय तक रह सकता है। गौतम! जघन्य एक समय और उत्कर्ष से भी एक समय तक रह सकता है। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल तक रह सकता है।
प्रथम समय मनुष्य जघन्य और उत्कृष्ट से एक समय तक और अप्रथमसमयमनुष्य जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण पर्यन्त और उत्कर्ष से एक समय कम पूर्वकोटिपृथकत्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकता है।
२२७. अंतरं-पढमसमयणेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमयणेरइयस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। ___ पढमसमयतिरिक्खजोणिए जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाइं समय-ऊणाई, उक्कोसेणं । वणसइकालो। अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं।
पढमसमयमणुस्सस्स जहण्णेणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाई समय-ऊणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमयमणुस्सस्स जहण्णेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयाहिंय, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
देवाणं जहा णेरइयाणं जहण्णेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमयदेवाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
अप्पाबहुयं-एतेसि णं भंते! पढमसमयणेरइयाणं जाव पढमसमयदेवाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा०? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयमणुस्सा, पढमसमयणेरइया असंखेजगुणा, पढमसमयदेवा असंखेजगुणा, पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा, अपढ मसमयनेरइयाणं जाव अपढ मसमयदेवाणं एवं चेव अप्पाबहु यं, णवरिं अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अणंतगणा १.२५६. आवलिकाओं का क्षल्लकभव होता है।