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दशविधाख्या नवम प्रतिपत्ति]
[१६५ ___२३०. भगवन्! प्रथमसमयएकेन्द्रियों का अन्तर कितना होता है? गौतम! जघन्य से समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयएकेन्द्रिय का जघन्य अन्तर एकसमय अधिक एक क्षुल्लकभव है और उत्कृर्ष से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है। शेष सब प्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य से एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। शेष अप्रथमसमयिकों का जघन्य अन्तर समयाधिक एक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है।
सब प्रथमसमयिकों में सबसे थोड़े प्रथमसमय पंचेन्द्रिय हैं, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथम समयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं।
इसी प्रकार अप्रथमसमयिकों का अल्पबहुत्व भी जानना चाहिए। विशेषता यह है कि अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण है।
दोनों का अल्पबहुत्व-सबसे थोड़े प्रथमसमयएकेन्द्रिय, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। शेष में सबसे थोड़े प्रथमसमय वाले हैं और अप्रथमसमय वाले असंख्येयगुण हैं।
भगवन! इन प्रथमसमयएकेन्द्रिय, अप्रथमसमयएकेन्द्रिय यावत् अप्रथमसमयपंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है?
गौतम! सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेंन्द्रिय, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय, विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमय एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं।
- इस प्रकार दस प्रकार के संसारसमापनक जीवों का कथन पूर्ण हुआ। इस प्रकार संसारसमापन्नकजीवाभिगम का वर्णन पूरा हुआ।
विवेचन-प्रस्तुत प्रतिपत्ति में संसारसमापन्नक जीवों के दस भेद कहे गये हैं, जो एकन्द्रिय से लगातार पंचेन्द्रियों के प्रथमसमय और अप्रथमसमय रूप में दो-दो भेद करने पर प्राप्त होते हैं। प्रथमसमयएकेन्द्रिय वे हैं जो एकेन्द्रियत्व के प्रथमसमय में वर्तमान हैं, शेष एकेन्द्रिय अप्रथमसमयएकेन्द्रिय हैं। इसी तरह द्वीन्द्रियादि के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए।
उक्त दसों की स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व इस प्रतिपत्ति में प्रतिपादित है।
स्थिति-प्रथमसमयएकेन्द्रिय की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति एक समय की हैं, क्योंकि दूसरे समयों में वह प्रथमसमय वाला नहीं रहता। इसी प्रकार प्रथमसमय वाले द्वीन्द्रियों आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिए। अप्रथमसमयएकेन्द्रिय की स्थित जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव (२५६ आवलिका-प्रमाण) है। एकसमय कम कहने का तात्पर्य यह है कि प्रथमसमय में वह अप्रथमसमय वाला नहीं है। उत्कर्ष में एक समय कम बावीस हजार वर्ष की स्थिति है।