Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 154
________________ षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति ] भागो । पुढविकाइयादीणं वणस्सइकालो। एवं अपज्जत्तगाणं पज्जत्तगाणवि । २१६. भगवन्! सूक्ष्म, सूक्ष्म से निकलने के बाद फिर कितने समय में सूक्ष्मरूप से पैदा होता है ? यह अन्तराल कितना है ? [ १३५ गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल है । यह असंख्येयकाल असंख्यात उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल रूप है तथा क्षेत्र से अंगुलासंख्येय भाग क्षेत्र में जितने आकाशप्रदेश हैं उन्हें प्रति समय एक-एक का अपहार करने पर जितने काल में वे निर्लेप हो जायें, वह काल असंख्येयकाल समझना चाहिए। (सूक्ष्म पृथ्वीकाय यावत् सूक्ष्म वायुकायिकों का अन्तर उत्कर्ष से वनस्पतिकाल-अनन्तकाल हैं, वनस्पति में जन्म लेने की अपेक्षा से ।) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म - निगोद का अन्तर असंख्येय काल ( पृथ्वीकाल) है। सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अन्तर औधिकसूत्र के समान है । २१७. एवं अप्पबहुंग- सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउ वाउ विसेसाहिया, सुहुमणिओया असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया । एवं अपज्जत्तगाणं, पज्जत्तगाणं एवं चेव । एएसि णं भंते! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, संखेज्जगुणा पज्जत्तगा । एवं जाव सुहुमणिगोया । एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहु मणिओयाण य पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा. । गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा, सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमआउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउक्काइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि - आउ-वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमणिओया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमणिओया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा अनंतगुणा, सुहुमा अपज्जता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमा पज्जत्ता विसेसाहिया । २१७. अल्पबहुत्वद्वार इस प्रकार है - सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक, सूक्ष्म-निगोद असंख्येयगुण, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुण और सूक्ष्म विशेषाधिक हैं । सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अल्पबहुत्व भी इसी क्रम से है। भगवन् ! सूक्ष्म पर्याप्तों और सूक्ष्म अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं? गौतम! सबसे थोड़े सूक्ष्म अपर्याप्तक हैं, सूक्ष्म पर्याप्तक उनसे संख्येयगुण हैं । इसी प्रकार सूक्ष्म 5

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