Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
निगोद पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! सूक्ष्मों में सूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत् सूक्ष्म-निगोदों में पर्याप्तों और अपर्याप्तों में समुदित अल्पबहुत्व का क्रम क्या है?
गौतम! सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्काय अपर्याप्तक, उनसे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्त विशेषाधिक. उनसे सक्ष्म वायकायिक अपर्याप्त विशेषाधिक. उनसे सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्त संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म पृथ्वी-अप्-वायुकायिक पर्याप्त क्रमशः विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तक असंखेयगुण, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्तक संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनन्तगुण, उनसे सूक्ष्म अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्तक संखेयगुण, उनसे सूक्ष्म पर्याप्त विशेषाधिक हैं। बादर जीव निरूपण
२१८. बायरस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। एवं बायरतसकाइयस्सवि। बायरपुढविकाइयस्स बावीसं वास सहस्साइं, वायरआउस्स सत्त वाससहस्सं, बायरते उस्स तिण्णिराइंदिया, बायरवाउस्स तिणि वाससहस्साई, वायरवणस्सइकाइयस्स दसवाससहस्साइं। एवं पत्तेयसरीरबायरस्सवि।णिओदस्स जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । एवं बायरणिगोदस्सवि, अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तगाणं उवकोसिया ठिई अंतोमुहुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं।
२१८. भगवन् ! बादर की स्थिति कितनी कही गई है? .. गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति है।
बादर त्रसकाय की भी यही स्थिति है। बादर पृथ्वीकाय की बावीस हजार वर्ष की, बादर अप्कायिकों की सात हजार वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की तीन हजार वर्ष की और बादर वनस्पति की दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है। इसी तरह प्रत्येक शरीर बादर की भी यही स्थिति है।
निगोद की जघन्य से भी और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की ही स्थिति है। बादर निगोद की भी यही स्थिति है। सब अपर्याप्त बादरों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और सब पर्याप्तों की उत्कृष्ट स्थिति उनकी कुल स्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम करके कहना चाहिए। बादर की कायस्थिति
२१९. बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं काल-असंखेन्जाओ उस्सप्पिणी