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षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति ]
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णिगोदा णं भंते! पदेसट्टयाए किं संखेज्जा० पुच्छा ? गोयमो ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । एवं सुहुमणिगोदावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । पएसट्टयाए सव्वेअन्नता एवं बायरनिगोदावि पज्जत्तगावि अपज्जत्तगावि । पसट्टयाए सव्वे अनंता ।
एवं णिओदजीवा नवविहावि पएसट्टयाए सव्वे अनंता ।
२२३. भगवन् ! निगोद द्रव्य की अपेक्षा क्या संख्यात असंख्यात हैं या अनन्त हैं?
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गौतम! संख्यात नहीं हैं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार इनके पर्याप्त और अपर्याप्त सूत्र भी कहने चाहिए।
भगवन् ! सूक्ष्मनिगोद द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात या अनन्त है ?
गौतम! संख्यात नहीं, असंख्यात हैं, अनन्त नहीं। इसी तरह पर्याप्त विषयक सूत्र तथा अपर्याप्त विषयक सूत्र भी कहने चाहिए ।
इसी प्रकार बादरनिगोद के विषय में भी कहना चाहिए। उनके पर्याप्त विषयक सूत्र तथा अपर्याप्त विषयक सूत्र भी इसी तरह कहने चाहिए ।
भगवन् ! निगोदजीव द्रव्य की अपेक्षा संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
गौतम! संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं । इसी तरह इसके पर्याप्तसूत्र भी जानने चाहिए । इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोदजीव, इनके पर्याप्त और अपर्याप्तसूत्र तथा बादरनिगोदजीव और उनके पर्याप्त और अपर्याप्तसूत्र भी कहने चाहिए। (ये द्रव्य की अपेक्षा से ९ निगोद के तथा ९ निगोदजीव के कुल अठारह सूत्र हुए ।)
भगवन् ! प्रदेश की अपेक्षा निगोद संख्यात हैं, असख्यात है या अनन्त है ?
गौतम! संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार पर्याप्तसूत्र और अपर्याप्तसूत्र भी कहने चाहिए।
इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र कहने चाहिए। ये सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं ।
इसी प्रकार बादरनिगोद के और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूत्र कहने चाहिए। ये सब प्रदेश की अपेक्षा अनन्त हैं ।
इसी प्रकार निगोदजीवों के प्रदेशों की अपेक्षा से नो ही सूत्रों में अनन्त कहना चाहिए ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में निगोद और निगोदजीवों की संख्या के विषय में जिज्ञासा और उत्तर है । जिज्ञासा प्रकट की गई हैं कि निगोद संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त है ? इन प्रश्नों के उत्तर दो अपेक्षाओं से हैं - द्रव्य की अपेक्षा और प्रदेश की अपेक्षा से । द्रव्य की अपेक्षा से निगोद संख्येय नही हैं, क्योंकि अंगुलासंख्येयभाग अवगाहना वाले निगोद सारे लोक में व्याप्त हैं। वे असंख्यात हैं, क्योंकि