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[जीवाजीवाभिगमसूत्र नो सम्मामिच्छादिट्ठी। ___सोहम्मीसाणादेवा किं णाणी अण्णाणी? गोयमा! दोवि तिण्णि णाणा, तिण्णि अण्णाणा णियमा जाव गेवेज्जा। अणुत्तरोववाइया नाणी, णो अण्णाणी। तिण्णि णाणा तिण्णि अण्णाणा णियमा जाव गेवेज्जा। अणुत्तरोववाइया णाणी, नो अण्णाणी, तिण्णि णाणा णियमा। तिविहे जोगे, दुविहे उवओगे, सव्वेसिं जाव अणुत्तरा।
२०१. (ई) भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में देवों के शरीर की अवगाहना कितनी है?
गौतम! उनके दो प्रकार के शरीर होते हैं -भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय, उनमें भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से सात हाथ है । उत्तरवैक्रिय शरीर की अपेक्षा से जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन है। इस प्रकार आगे-आगे के कल्पों के एक-एक हाथ कम करते जाना चाहिए, यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों की एक हाथ की अवगाहना रह जाती हैं । (जैसे सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीर की अवगाहना छह हाथ प्रमाण, ब्रह्मलोक-लान्तक में पांच हाथ, महाशुक्र-सहस्रार में चार हाथ, आनतप्राणत-आरण-अच्युत में तीन हाथ, नवग्रैवेयक में दो हाथ और अनुत्तर-विमानों में एक हाथ प्रमाण अवगाहना है ।) ग्रैवेयकों और अनुत्तर विमानों में केवल भवधारणीय शरीर होता है । वे देव उत्तरविक्रिया नहीं करते।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौनसा है?
गौतम! छह संहननों में से एक भी संहनन उनमें नहीं होता; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी · होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं। अत: वे असंहननी हैं। जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ-मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना चाहिए।
भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देवों के शरीर का संस्थान कैसा है?
गौतम! उनके शरीर दो प्रकार के हैं -भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। जो भवधारणीय शरीर है, उसका समचतुरस्रसंस्थान है और जो उत्तरवैक्रिय शरीर है, उनका संस्थान (आकार) नाना प्रकार का होता है । यह कथन अच्युत देवलोक तक कहना चाहिए। ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों के देव उत्तरविकुर्वणा नहीं करते। उनका भवधारणीय शरीर समचतुरस्रसंस्थान वाला है। उत्तरविक्रिया वहां नहीं
भगवन् ! सौधर्म-ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है?
गौतम! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभायुक्त उनका वर्ण है। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग (केशर) के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवोंतक सफेद वर्ण कहना चाहिए। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशक्ल है।