Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ततीय प्रतिपत्ति: बाहल्य आदि प्रतिपादन]
[११३ भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर की गंध कैसी है?
गौतम! जैसे कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यो की सुगंध होती है, उससे भी अधिक इष्ट, कान्त यावत् मनाम उनके शरीर की गंध होती है । अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा ही कथन करना चाहिए।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्पों के देवों के शरीर का स्पर्श कैसा कहा गया है?
गौतम! उनके शरीर का स्पर्श स्थिर रूप से मृदु, स्निग्ध और मुलायम छवि वाला कहा गया है। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवों के श्वास के रूप में कैसे पुद्गल परिणत होते हैं?
गौतम! जो पुद्गल इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनाम होते हैं, वे उनके श्वास के रूप में परिणत होते हैं । यही कथन अनुत्तरोपपातिकदेवों तक कहना चाहिए तथा यही बात उनके आहार रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों के सम्बन्ध में जाननी चाहिए। यही कथन अनुत्तरोपपातिकदेवों पर्यन्त समझना चाहिए।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों के कितनी लेश्याएं होती है? . गौतम! उनके मात्र एक तेजोलेश्या होती है । सनत्कुमार और माहेन्द्र में एक पद्मलेश्या होती है, ब्रह्मलोक में भी पद्मलेश्या होती है। शेष सब में केवल शुक्ललेश्या होती है। अनुत्तरोपपातिकदेवों में परमशुक्ल लेश्या होती है।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यमिथ्यादृष्टि हैं?
गौतम! तीनों प्रकार के हैं। ग्रैवेयक विमानों तक के देव सम्यग्दृष्टि-मिथ्यादृष्टि-मिश्रदृष्टि तीनों प्रकार के हैं। अनुत्तर विमानों के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि वाले नहीं होते।
भगवन् ! सौधर्म-ईशान कल्प के देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी?
गौतम ! तीनों प्रकार के हैं । जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे नियम से तीन अज्ञान वाले हैं । यह कथन |वेयकविमान तक करना चाहिए। अनुत्तरोपपातिकदेव ज्ञानी ही है-अज्ञानी नहीं। इस प्रकार ग्रैवेयक देवों तक तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की नियमा है । अनुत्तरोपपातिकदेव ज्ञानी ही हैं-अज्ञानी नहीं। इस प्रकार ग्रैवेयकदेवों तक तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की नियमा है । अनुत्तरोपपातिकदेव ज्ञानी ही हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें तीन ज्ञान नियमत: होते ही हैं।
इसी प्रकार उन देवों में तीन योग और दो उपयोग भी कहने चाहिए। सौधर्म-ईशान से लगाकर अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त सब देवों में तीन योग और दो उपयोग पाये जाते हैं।
१. किण्हा नीला काऊ तेउलेस्सा य भवणवंतरिया।
जोइस सोहम्मीसाण तेउलेस्सा मुणेयव्वा ॥१॥ कप्पेसणंकुमारे माहिंदे चेव बंभलोए य। एएसु पम्हलेस्सा तेणं परं सुक्कलेस्सा य॥२॥