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पञ्चविधाख्या चतुर्थ प्रतिपत्ति]
[१२७ २०९. भगवन् इन एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
गौतम! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उनसे एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं।
___ इसी प्रकार अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक और उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण हैं। उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक है। ___ इसी प्रकार पर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सबसे थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्तक
है। उनसे सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक है। भगवन् ! इन सेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम! सबसे थोड़े सेन्द्रिय अपर्याप्त, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण हैं। ___ इसी प्रकार एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त का अल्पबहुत्व जानना चाहिए। ___भगवन् ! इन द्वीन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक है? गौतम! सबसे थोड़े द्वीन्द्रिय पर्याप्त , उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येगुण हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों का अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
भगवन्! इन एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्तों में कौन किससे अल्प, बहु, तुल्य या विशेषाधिक है?
___ गौतम! सबसे थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिंक, उनसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सेन्द्रिय विशेषाधिक।
इस प्रकार पांच प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का वर्णन पूरा हुआ।
विवेचन-(१) पहले एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियों का सामान्य रूप से अल्पबहुत्व बताते हुए कहा गया है-सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, क्योंकि ये पंचेन्द्रियजीव संख्यात योजन कोटी-कोटी प्रमाण विष्कंभसूची से प्रमित प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्य श्रेणियों के आकाश-प्रदेशों के बराबर हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक है, क्योंकि ये प्रभूत संख्येययोजन कोटीकोटिप्रमाण विष्कंभसूची के प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई श्रेणियों के आकाश-प्रदेशराशि के बराबर हैं। उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूततर संख्येय कोटीकोटीप्रमाण विष्कंभसूची के प्रतर के असंख्येयभागगत श्रेणियों की आकाशराशिप्रमाण हैं । उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि ये प्रभूततम संख्येय कोटीकोटीप्रमाण