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षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति
२१०. तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा, ते एवमाहंसु, तं जहा-पुढविकाइया, आउक्काइया, तेउक्काइया, वाउकाइया वणस्सइकाइया, तसकाइया। ___ से किं तं पुढविकाइया? पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता तं जहा-सुहुमपुढविकाइया, बायर-पुढविकाइया। सुहुमपुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।एवं बायर-पुढविकाइयावि।एवं चउक्कएणं भेएणं आउतेउवाउवणस्सइकाइयाणं चउक्का णेयव्वा।
से किं तं तसकाइया? तसकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। ___ २१०. जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार है-१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक और ६. त्रसकायिक।
- भगवन् ! पृथ्वीकायिकों का क्या स्वरूप है? गौतम! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं -पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक के भी दो भेद (प्रकार) हैं -पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के चार-चार भेद कहने चाहिए।
भगवन् ! त्रसकायिक का स्वरूप क्या है? गौतम! त्रसकायिक दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक। __ २११. पुढविकाइयस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। एवं सव्वेसिं ठिई णेयव्वा। तसकाइयस्स जहन्नहेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं जहन्नेणं वि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगाणं सव्वेसिं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुत्तऊणा कायव्वा।
२११. भगवन् ! पृथ्वीकायिक की कितने काल की स्थिति कही गई है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष। इसी प्रकार सबकी स्थिति कहनी चाहिए। त्रसकायिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। सब अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । सब पर्याप्तकों की उत्कृष्ट स्थिति कुल स्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम करके कहनी चाहिए।