Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र सौधर्म-ईशानकल्प तक ही देविया हैं , अतएव आगे के विमानों में देवीरूप से उत्पन्न होना नहीं कहना चाहिए। ग्रैवेयक विमानों तक तो देवीरूप में उत्पन्न होने का निषेध किया गया है । अनुत्तरविमानों में देवीरूप और देवरूप दोनों का निषेध है । देवियां तो वहां होती ही नहीं। देवों का निषेध इसलिए किया गया है कि विजयादि चार विमानों में तो उत्कर्ष से दो बार, सर्वार्थसिद्ध विमान में केवल एक ही बार जीव जा सकता है अनन्तबार नहीं। अनन्तबार न जाने की दृष्टि से ही निषेध समझना चाहिए। यहां देवों का वर्णन समाप्त होता है। सामान्यतया भवस्थिति आदि का वर्णन
२०६. नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई, एवं सव्वेसिं पुच्छा। तिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं एवं मणुस्साणवि। देवाणं जहा रइयाणं।।
देव-णेरइयाणं जा चेव ठिती सा चेव संचिट्ठणा।तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। मणुस्से णं भंते! मणुस्सेति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडि पुहुत्तमब्भहियाई। णेरइयमणुस्सदेवाणं अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहु त्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। तिरिक्खजोणियस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोपमसयपुहुत्तसाइरेगं। .
__एएसिंणं भंते! णेरइयाणं जाव देवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मणुस्सा, णेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिया अणंतगुणा। सेत्तं चउव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता।
२०६. भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है?
गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। इस प्रकार सबके लिए प्रश्न कर लेना चाहिए। तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। मनुष्यों की भी यही है। देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जाननी चाहिए।
देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है अर्थात् कार्यस्थिति है। (उसी-उसी भव में उत्पन्न होने के काल को कायस्थिति कहते हैं)।
तिर्यंच की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। भंते ! मनुष्य, मनुष्य के रूप में कितने काल तक रह सकता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रह सकता है।
नैरयिक, मनुष्य और देवों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। तिर्यंचयोनियों