Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र भगवन् ! पर्याप्त एकेन्द्रिय यावत् पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवों की कितनी स्थिति है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बावीस हजार वर्ष की स्थिति है। इसी प्रकार सब पर्याप्तों की उत्कृष्ट स्थिति उनकी कुलस्थिति से अन्तर्मुहूर्त कम कहनी चाहिए। ___ २०८. एगिदिए णं भंते! एगिदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
बेइंदिए णं भंते! बेइंदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जं कालं जाव चउरिदिए संखेज्जं कालं। पंचिंदिए णं भंते! पंचिंदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं।
एगिदिए णं अपज्जत्तए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं जाव पंचिंदियअपज्जत्तए।
पज्जत्तगएगिदिए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखिज्जाइं वाससहस्साई। एवं बेइंदिएवि, णवरिं संखेज्जाइं वासाइं। तेइंदिए णं भंते० संखेज्जा राइंदिया। चउरिदिए णं० संखेज्जा मासा। पज्जत्तपंचिंदिए सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेगं।
एगिदियस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होई? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेन्जवासमब्भहियाई। ____बेइंदियस्स णं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचेंदियस्स।अपज्जत्तगाणं एवं चेव।पज्जत्तगाण वि एवं चेव। ___ २०८. भगवन् ! एकेन्द्रिय, एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है।
. भगवन् ! द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है। गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है। यावत् चतुरिन्द्रिय भी संख्यात काल तक रहता है।
भगवन् ! पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार सागरोपम तक रहता है।
भगवन् ! अपर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। इसी प्रकार अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तक कहना चाहिए।
भगवन् ! पर्याप्त एकेन्द्रिय उसी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष तक रहता है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय का कथन करना चाहिए, विशेषता यह है कि यहां संख्यात वर्ष कहना चाहिए।